अक्सर यह सुनने में आता है की पुरुषों की सफलता के पीछे किसी न किसी(माँ ,पत्नी, बहन) रूप में एक महिला का हाथ होता है। ऐसे में यह सवाल भी लाज़मी है की दुनिया भर में अपनी कामयाबी का परचम लहराने वाली भारतीय महिलाओं के पीछे क्या किसी पुरुष का सहयोग और साथ नहीं है? यह सच है की औरतों के साथ कुछ घरों आज भी सामंतवादी सोच के चलते अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता पर तस्वीर के दूसरे पहलू पर भी गौर करना जरूरी है। हमारे समाज में आज ऐसे घरों की भी कमी नहीं है जहाँ पूरे घर-परिवार से लड़कर भी पिता अपनी बेटियों को घर से दूर पढने और काम करने की इज़ाज़त देकर उनका हौसला बढ़ा रहे है। ऐसे जीवनसाथी भी मिल जायेंगे जिनके साथ और सहयोग से कई लड़कियां शादी के बाद भी अपनी पढाई लिखाई जारी रख रही हैं और करियर में नए आयाम छू रही है। बहन की कोई इच्छा पूरी न होने पर माता-पिता से लड़ने वाले भाई भी कम नहीं । मैंने ऐसे कई घर देखे हैं जहाँ करियर और पढाई के बाबत बहन पर रोकटोक हो तो भाई बहन की जमकर वकालत करते हैं।
आये दिन सफलता की नयी इबारत लिख रही महिलाओं के पीछे भी किसी न किसी रूप में पुरुषों का सहयोग जरूर है। फिर चाहे वो मनोबल और मार्गदर्शन देने वाले पिता हों, संबल देने वाला जीवनसाथी या बहन की सफलता से गौरान्वित होने वाले भाई।
मौजूदा दौर में सशक्त बनती बेटियों के पीछे उनके स्नेहिल पिताओं का बहुत बड़ा हाथ है। क्योंकि बात चाहे ऊंची तालीम की हो या करियर बनाने की बेटियों को पीछे रखने का विचार भी उनके मन में नहीं होता।
आज के पापा बेटी की परवरिश में भी कोई कमी नहीं रखना चाहते। अनुशासन और व्यवहारिकता का पाठ पढ़ने वाले पापा ही बेटी के सपनों को पंख फ़ैलाने का असमान देते हैं । पिता के रूप में एक पुरुष बेटी के जीवन की नींव को वो मजबूती देता है जिसके दम पर वो पूरी जिंदगी हौसले के साथ जी सकती है। तभी तो आजीवन बेटियां अपने पिता के व्यक्तित्व से प्रभावित रहतीं हैं। इसी तरह स्नेह और सुरक्षा का नाता भाई बहन का होता है। भाई जो चाहे उम्र में छोटा हो या बड़ा बहन के लिए हमेशा फिक्रमंद रहता है। आजकल कई घरों में देखने में आ रहा है की बहन कि पढ़ाई या नौकरी के बारे में अगर माता-पिता को कोई संकोच होता है तो भाई उन्हें समझाते हैं कि लड़कियों का पढना लिखना कितना जरूरी है? हर तरह से बहन का बचाव करना हमारे यहाँ के भाई अपना फ़र्ज़ समझाते है।
शादी के बाद किसी महिला के लिए संबल और स्नेह का स्रोत होता है पति का साथ। बीते कुछ बरसों में जीवनसाथी की सोच में आये सकारात्मक बदलावों ने महिलाओं को और सशक्त किया है। वे पत्नी की तरक्की में अपना पूरा योगदान दे रहे हैं। देखने में आ रहा है उन्हें पत्नी कि कामयाबी और उपलब्धियां हीन भावना नहीं देतीं बल्कि गौरव का अहसास कराती हैं । बहुत अच्छा लगता है यह देखकर कि शादी के बाद भी कई पति अपनी पत्नी को आगे पढने और आत्मनिर्भर बनने की राह सुझाते हैं और ज़रुरत पड़े तो परिवार के उन सदस्यों से भी लड़ जाते हैं जिनकी सोच रूढ़िवादी है।
हमारे समाज में ऐसे परिवारों की गिनती आज भले कम है जहाँ बेटियां पिता की विरासत तक संभाल रही हैं पर हकीकत यह भी है की इस संख्या में हो रहा इजाफा उस बदलाव की ओर इशारा करता है जहाँ पुरुषों को हर हाल, हर रूप में शोषक की उपाधि देना सही नहीं है। क्योंकि जिंदगी के अच्छे-बुरे वक़्त में पिता, पति या भाई किसी न किसी रूप में पुरुष भी हमारे साथ खड़े नज़र आते है।