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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

28 June 2011

विदेशों में भारतीय महिलाओं का जीवन- संघर्ष की मिसाल........!



अपने देश, घर-परिवार और समाज से दूर हमेशा के लिए विदेशों में आ बसे परिवारों की महिलाओं का जीवन जब करीब से देखा और जाना तो लगा कि यहां भी जद्दोज़हद कुछ कम नहीं है। नई जगह और नये लोग ....... स्थान और परिस्थितियों का बदलाव एक ही देश में हो तो भी जीवन ठहर सा जाता है |  ऐसे में आप समझ ही सकते हैं कि पूरे तरह एक नये परिवेश में आकर बसना किसी भी महिला के लिए कितना मुश्किलों भरा हो सकता है.....?  


महिलाओं के सन्दर्भ में यह बात इसलिए कर रही हूँ क्योंकि जिस पारिवारिक-सामाजिक माहौल को ये परिवार पीछे छोड़कर आते हैं उससे महिलाएं पुरुषों से ज्यादा जुडी होती हैं| साथ देश में रहते हुए उनका वास्ता घर से बाहर की जिम्मेदारियों से कम ही पड़ता है | जबकि यहाँ आने के बाद भीतर बाहर का कोई फर्क ही नहीं रह जाता |  

ट्रैफिक के नियमों से लेकर जिंदगी की रफ्तार तक यहां सब कुछ अलग है । कभी कभी देखकर हैरान हो जाती हूं कि किस तरह यहां आने वाली महिलाओं ने सब कु छ आत्मसात कर लिया है। नौकरी करती हैं......... बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं......... घर-परिवार संभाल रही हैं........। बच्चों को नये माहौल में जीना सिखा रही हैं........ साथ ही पुराने संस्कारों से जोङकर रखने का प्रयास कर रही हैं..........वे मुझे हर मोर्चे पर पूरी शिद्दत से डटी नज़र आती है। 

गौर करने की बात यह भी है भारत के विपरीत यहां घर का काम करने के लिए भी कोई नौकर नहीं होते। घर हो बाहर किसी तरह का कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं। ऐसे में उनके माथे पर चिंता की लकीरों के साथ ही आत्मविश्वास की ओज देखकर एक भारतीय  के नाते गर्व महसूस होता है। 

यहां आकर बसे परिवारों में हर उम्र की महिलाएं शामिल है। एक उम्र के बाद इतना बङा बदलाव और उसके परिणामस्वरूप उपजने वाली परिस्थितियों से सामंजस्य बनाना आसान नहीं होता। ऐसे में यहां कुछ बुजुर्ग महिलाओं का हौसला देखकर जीवन के प्रति एक नयी आशा का संचार होता है। 

विदेशों में जीवन को सरल बनाने के अनगिनत साधन होने के बावजूद यहां जिंदगी बहुत जटिल है। सब कुछ ऊपर से जितना सहज और सरल दिखता है भीतर से उतना ही बंधा बंधा सा है। 

ऐसे में अपने जीवन का लंबा समय देश में बिताने के बाद  पराई धरती पर बसने और वहां की भाषा से लेकर कार्य-संस्कृति तक, हर चीज से तालमेल कर लेने वाली भारतीय महिलाओं की हिम्मत सच में संघर्ष की मिसाल है। 

16 June 2011

हिटिंग हर्ट्स ममा.....हिटिंग हर्ट्स.......!





ये  पांच शब्द साढ़े तीन साल के चैतन्य ने टीवी का एक दृश्य जिसमें बच्चे की पिटाई हो रही थी, को देखते हुए कुछ इस तरह से कहे कि लगा  बच्चे हमसे कहीं ज्यादा समझते और महसूस करते हैं | बाल सुलभ सोच के भाव कितने  गहरे होते हैं ...... इस सोच के साथ पूरा दिन बीत गया |  न जाने क्यों..... उसकी कही बात को नज़रंदाज़ करने का भाव एक बार भी मन में नहीं आया | शायद इसकी वजह यह भी है कि इन मासूमों की कही बात में कोई किन्तु-परन्तु तो होता ही नहीं ....... उनका मन-मस्तिष्क तो बातें बनाकर बोलना जानता ही नहीं  | 

टीवी कार्यक्रम से खुद को अलग करते हुए सोचा कि हमारे परिवारों और स्कूलों में बच्चों पर हाथ उठाना एक आम बात है | आये दिन ऐसी घटनाएँ सुनने में आती हैं | ऐसे में किस हद तक बच्चों का अंतर्मन व्यथित होता होगा | किस सोच के साथ वे बड़े होते होंगें ....?  जहाँ उन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा पाने कि आशा होती है वहां उनके साथ होने वाला हिंसात्मक व्यवहार उन्हें भीतर तक विचलित करता होगा | 

कई बार देखने में आता है की परिवार के आर्थिक हालातों से लेकर अभिभावकों की दिनचर्या तक शाम ढले बच्चों के साथ होने वाले व्यवहार के लिए जिम्मेदार होती है | जबकि हम सब जानते हैं की इन सब सामाजिक , आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों के लिए छोटे -छोटे बच्चे किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं होते | 

कभी पढाई नहीं करने को लेकर तो कभी उनका व्यवहार सुधारने के नाम पर हमारे घरों में  बच्चे पीटे जाते हैं | अच्छे खासे पढ़े लिखे अभिभावक भी जाने अनजाने बच्चों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करते हैं | माता पिता के पास बच्चों को बैठकर उन्हें पढ़ाने या पढाई के विषय में बात करने का समय नहीं है पर बच्चा अव्वल आये यह चाहत पहले से कहीं ज्यादा बलवती हुई है | सच में कभी कभी तो लगता है कि बच्चों से जितनी अधिक उम्मीदें बढीं हैं अभिभावकों का उनके प्रति गुस्सा भी उतना ही ज्यादा हुआ है | 

बच्चों को अनुशासित करने के लिए भी कई बार अभिभावक मारपीट का रास्ता अपनाते हैं | जो की अंततः बच्चे का व्यवहार बिगाड़ने का काम करता है |  छोटी उम्र में घर के  लोगों से मिला ऐसा व्यवहार उल्टा उन्हें  आक्रामक बना देता है | उनके व्यक्तित्व में कई व्यवहारगत समस्याएं ले आता है | हमेशा के लिए उनके जीवन को गंभीर भावनात्मक संकट की अनचाही सौगात मिल जाती है | 

पिटाई के विकल्प बहुत हैं पर उनके लिए अभिभावकों को भी बच्चों को समय देना होगा ....... उन्हें आराम से बैठकर समझाना होगा | उनके करीब जाकर उनकी गलतियों से उन्हें अवगत करवाना होगा ..... और जो कुछ भी माता-पिता बच्चे से चाहते हैं चाहे वो एकेडमिक परफोर्मेंस हो या व्यवहारगत बदलाव  उससे उन्हें  स्वयं भी जूझना होगा | हाथ उठाने के बजाये परिस्थितियों  को समझकर बच्चे को संबल देना होगा | 

ज़रा सोचिये एक छोटा बच्चा जो कई बार यह भी नहीं जानता कि वो मार क्यों खा रहा है .....? उसकी गलती क्या है और वो उसने कब कर दी ......? उस बच्चे से सार्थक संवाद करने के बजाय  हाथ उठाना कितना सही है ...? बिना सोचे विचारे बड़े उनके शरीर पर चोट करते हैं .....पर वो लगती उनके कोमल  ह्रदय पर है | शायद  हम सबको समझने की आवश्यकता कि ..... हिटिंग हर्ट्स...........!

08 June 2011

शब्दों बिना जीवन की बिसात क्या ...?


शब्द ...
कभी धुन में गाये जाते हैं ......!
कभी वादे में निभाए जाते हैं ....!

शब्द .....
कभी मंदिर-मस्जिद तोड़ते हैं....!
 कभी जनमानस को जोड़ते हैं......!

शब्द .......
कभी संबधों को बांधते हैं ......!
कभी सीमाओं को लांघते हैं .....!

शब्द ...
कभी बस मायाजाल लगते हैं......!
 कभी मन को स्पंदित करते  हैं.....!

शब्द .....
कभी बुजुर्गों के अनुभव में ढलते हैं.....!
कभी तुतलाहट से डगमगाते हैं .......!

शब्द ...
कभी मौन में भी बोलते हैं........!
कभी हर अक्षर को तोलते हैं ......!

शब्द .....
  कभी तेरे , कभी मेरे होते हैं ........!
    कभी अपनेपन के रंग उकेरे होते  हैं....!

शब्द..... 
कभी निशब्द कर जाते हैं......!
कभी सब कुछ कह जाते हैं .....!


शब्द ....
कभी मात्र कोलाहल लगते हैं.......!
कभी हर घुटन का हल लगते हैं....!


शब्द ....
कभी अमर हो जाते हैं ....!
कभी बस ख़बर हो जाते हैं....!


शब्द ......
कभी हृदय को विदीर्ण कर दें......!
कभी मन का हर घाव भर दें.....!

शब्द अर्थ-अनर्थ , अंत-अनंत  सब कुछ समेटे हैं .....!
तभी तो .....!  
 शब्दों बिना जीवन की बिसात क्या ...?
कोई बात -बेबात क्या ...?