अपने देश, घर-परिवार और समाज से दूर हमेशा के लिए विदेशों में आ बसे परिवारों की महिलाओं का जीवन जब करीब से देखा और जाना तो लगा कि यहां भी जद्दोज़हद कुछ कम नहीं है। नई जगह और नये लोग ....... स्थान और परिस्थितियों का बदलाव एक ही देश में हो तो भी जीवन ठहर सा जाता है | ऐसे में आप समझ ही सकते हैं कि पूरे तरह एक नये परिवेश में आकर बसना किसी भी महिला के लिए कितना मुश्किलों भरा हो सकता है.....?
महिलाओं के सन्दर्भ में यह बात इसलिए कर रही हूँ क्योंकि जिस पारिवारिक-सामाजिक माहौल को ये परिवार पीछे छोड़कर आते हैं उससे महिलाएं पुरुषों से ज्यादा जुडी होती हैं| साथ देश में रहते हुए उनका वास्ता घर से बाहर की जिम्मेदारियों से कम ही पड़ता है | जबकि यहाँ आने के बाद भीतर बाहर का कोई फर्क ही नहीं रह जाता |
ट्रैफिक के नियमों से लेकर जिंदगी की रफ्तार तक यहां सब कुछ अलग है । कभी कभी देखकर हैरान हो जाती हूं कि किस तरह यहां आने वाली महिलाओं ने सब कु छ आत्मसात कर लिया है। नौकरी करती हैं......... बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं......... घर-परिवार संभाल रही हैं........। बच्चों को नये माहौल में जीना सिखा रही हैं........ साथ ही पुराने संस्कारों से जोङकर रखने का प्रयास कर रही हैं..........वे मुझे हर मोर्चे पर पूरी शिद्दत से डटी नज़र आती है।
गौर करने की बात यह भी है भारत के विपरीत यहां घर का काम करने के लिए भी कोई नौकर नहीं होते। घर हो बाहर किसी तरह का कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं। ऐसे में उनके माथे पर चिंता की लकीरों के साथ ही आत्मविश्वास की ओज देखकर एक भारतीय के नाते गर्व महसूस होता है।
यहां आकर बसे परिवारों में हर उम्र की महिलाएं शामिल है। एक उम्र के बाद इतना बङा बदलाव और उसके परिणामस्वरूप उपजने वाली परिस्थितियों से सामंजस्य बनाना आसान नहीं होता। ऐसे में यहां कुछ बुजुर्ग महिलाओं का हौसला देखकर जीवन के प्रति एक नयी आशा का संचार होता है।
विदेशों में जीवन को सरल बनाने के अनगिनत साधन होने के बावजूद यहां जिंदगी बहुत जटिल है। सब कुछ ऊपर से जितना सहज और सरल दिखता है भीतर से उतना ही बंधा बंधा सा है।
ऐसे में अपने जीवन का लंबा समय देश में बिताने के बाद पराई धरती पर बसने और वहां की भाषा से लेकर कार्य-संस्कृति तक, हर चीज से तालमेल कर लेने वाली भारतीय महिलाओं की हिम्मत सच में संघर्ष की मिसाल है।