बचपन की प्यारी यादों का पिटारा जिन अनगिनत बातों को समेटे रहता है उनमें से एक दादी-नानी से सुनी कहानियां भी होती हैं । कहानियां जो समाज की व्यवस्था से लेकर परिवार और व्यवहार तक, जीवन के हर पहलू की सीख दिया करती थीं। घर के बङे बुजुर्गों के सान्निध्य में हर पीढी किस्सा कहानी सुनती आई है। पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे इसलिए शाम ढलते ही मंडली जम जाया करती थी और बच्चे सब कुछ भूल कर रम जाते थे इन कहानियों में।
बचपन भले ही बेफिक्र होता है पर जाने अनजाने कई समस्याओं से जूझता भी रहता है। उनके मनोविज्ञान को रूपायित करने वाली कहानियां कब उन्हें इन उलझनों से बाहर ले आती हैं पता ही नहीं चलता। यकीन मानिए छोटी छोटी कहानियां बच्चों के जीवन की कई बङी समस्याओं का संक्षिप्त हल हैं।
मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्तर कहानियों में की गई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरी जगह बना लेती है। यही वजह है कि बच्चे कहानियां सुनते ही नहीं गुनते भी हैं ।
हमारे देश में किस्सों कहानियों का जितना समृद्ध इतिहास है दुनिया भर में शायद ही कहीं मिले। मनोरंजन के साथ ही जीवन जीने की सीख देने वाली कहानियां टीवी और इंटरनेट के जमाने में कहीं गुम हो गयी हैं पर इनका महत्व ना तो कम हुआ है और ना ही कभी होगा।
मेरा अनुभव-
पिछले कुछ महीनों से खुद अनुभव कर रही हूं कि कहानियां काम करती हैं.......सच में काम करती हैं। चैतन्य को रोज कहानी सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसमें कई बदलाव नज़र आने लगे। मैंने बच्चों की कई कहानियां पढीं और खुद भी रचीं। उसे जिन चीजों से डर लगता था उसे दूर करने के लिए खास किस्से बुने। परिवर्तन देखने लायक था। उसको नये शब्द मिले । कहानी सुनने के दौरान उसे इतनी उत्सुकता रहती है कि सब कुछ अच्छा रहे कुछ नकारात्मक न हो। वरना तो झट से टोक देता है। आजकल खुद नई कहानी बनाकर मुझे सुनाने लगा है। कई सारे पात्रों को समेटे उसकी कहानियां सकारात्मक और शब्दावली बहुत प्रभावी बन रही है। सच में यह बदलाव बहुत सुखद अनुभूति देने वाला है।
सच में कहानियां काम करती हैं.......बस जरूरत इस बात की होती है कि हम बच्चे की रूचि और मनोविज्ञान को समझकर कहानी सुनायें। अभिभावक बच्चे की किसी खास कमजोरी पर ध्यान देकर ऐसी कहानियां बुनें जो उनमें आत्मविश्वास फूँक दें। मेरा अनुभव तो यही है कि कहानियां सुनकर बच्चों में उनका अपना एक दृष्टिकोण पनपता है। उनकी शब्दावली बढती है। एक नई कहानी खुद रचने और उसका कोई परिणाम खोजने की सोच जन्म लेती है। कहानी का एक संतुलित अंत करने के विचार को बल मिलता है मानो उन्हें स्वयं अपनी राह बनाने की सोच और शक्ति मिल रही हो।