धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं कई व्यवहारिक कारण भी हैं जिनके चलते हिन्दू संस्कृति में चार महीने( आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक ) कोई मांगलिक कार्य नहीं होते | माना जाता है की चतुर्मास का समय सभी देवगण भगवान विष्णु का अनुसरण करते हुए सोते हुये बिताते हैं | कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि कि देवोत्थान एकादशी से फिर मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है | इस दिन घर और मंदिर में दिवाली की तरह दीप प्रज्ल्वित किये जाते हैं | आज के दिन तुलसी विवाह करवाए जाने भी परम्परा है |
चतुर्मास श्रीहरी के शयनकाल का समय तो होता ही है और भी कई व्यावहारिक कारण हैं जिनके चलते इस समय धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठानों की तैयारियां संभव नहीं हो पातीं | इसकी वजह यह भी है कि चातुर्मास की शुरुआत ऐसे माह से होती है जब खेती बड़ी का काम बहुत हुआ करता था और शायद आज भी होता है | भारत जैसे कृषिप्रधान देश में जहाँ चौमासे की फसल से परिवार की वर्षभर की आवश्यकताएं पूरा हुआ करती थीं | इस समय घर के हर व्यक्ति को खेत खलिहान में ज्यादा से ज्यादा समय देना होता है | ऐसे धार्मिक सामाजिक अनुष्ठान कर पाना बड़ा मुश्किल है | हमारे देश में जहाँ अधिकतर जनसँख्या आज भी खेती बड़ी से जुड़ी है चातुर्मास में शुभ कार्यों का टालना धार्मिक ही व्यावहारिक महत्व भी रखता है |
स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चतुर्मास का बड़ा महत्व है | इन चार महीनों में कंद मूल और हरी सब्जियों से परहेज के लिए कहा जाता है | क्योंकि वर्ष का यही समय होता है जब जीवाणुओं का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है | ऐसे में अपच, अजीर्ण और वायुविकार जैसी स्वास्थ्य समस्याएं वातावरण में आद्रता के चलते बढ़ जाती हैं | बरसात के मौसम में रखा गया खानपान का संयम हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है | इसीलिए चतुर्मास को धर्म ,परम्परा ,संस्कृति और स्वास्थ्य को एक सूत्र में पिरोने वाला समय माना जाता है |
चतुर्मास का समय प्रकृति की उपासना का भी समय है |चतुर्मास में तुलसी , पीपल सींचने और अक्षय नवमी को आंवले के वृक्ष की पूजा की परम्परा भी इसी का हिस्सा है | देवउठनी एकादशी यानि की चतुर्मास के समापन पर तुलसी विवाह की भी परम्परा है | इस परम्परा को हम प्रकृति और परमात्मा के प्रेम का प्रतीक भी मान सकते हैं |
आज हम सबको इस बात की जानकारी है की (पीपल , तुलसी ,आंवला ) ये सभी औषधीय पौधे हैं | इन सबको पूजा जाना भी कहीं न कहीं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का सन्देश देता है | देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी के पौधों का दान भी किया जाता है | यानि घर-घर में स्वस्थ जीवन की सजगता का सन्देश दिए जाने की सुंदर और सार्थक परम्परा |
आज देवउठनी एकादशी के दिन चार माह चल रहे मेरे चतुर्मास के उपवास भी पूरे हुए हैं | इसे देव प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है और प्रबोधन का अर्थ ही जागना होता है...... हम सबके विचारों और कर्मों में भी देवत्व जागृत हो यही श्रीहरी से प्रार्थना है |
70 comments:
जानकारी का आभार। आज ही माँ से बात करते समय उनके उपवास की बात पता लगी। पर्व-त्योहार के आध्यात्मिक पक्ष के साथ ही उनके सामाजिक पक्ष भी हैं। धन्य हैं वे लोग जिन्होंने न केवल "सर्वे भवंतु सुखिनः" का उच्चार किया बल्कि सरल अशिक्षित जनता के लिये सुदृढ, स्वास्थ्यप्रद परम्परायें बनाकर दीं।
बड़ी ही वैज्ञानिकता के साथ ये नियम बनाये गये हैं।
चातुर्मास का अर्थ हमें सही मायने में आज पता चला, उपवास तो हम बचपन से देखते आ रहे हैं ।
बढ़िया जानकारी के लिए आभार आपका !
अपने बहुत सुन्दर और रोचक तरीके से अपने देश की एक प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा और अनुष्ठान की जानकारी दी -बहुत अच्छा लगा पढ़कर !साधुवाद दे दूं क्या?(दे दिया ....पहले भी अकथित देता ही रहा हूँ इतना सहज और संतुलित लिखती हैं जो आप )
एक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जैसा की आपने खुद ही लिखा है कि,कृषि कार्यों के कारण सामाजिक आदि कार्यों हेतु समयाभाव रहता है। इसके अतिरिक्त उस समय आवा-गमन के साधन भी आज जैसे सुलभ नहीं थे। स्वास्थ्य कारणो की चर्चा भी आपने खुद ही की है। तर्कसंगत ये बाते तो बिलकुल सही हैं। परंतु हरी-शयन की चर्चा अवैज्ञानिक और बुद्धि को कुन्द करने वाली है। आंवला,तुलसी और पीपल ये तीनों वृक्ष दिन-रात आक्सीजन छोडते हैं जबकि दूसरे पौधे दिन मे आक्सीजन तथा रात मे कार्बन-डाई-आकसाईड छोडते हैं। अतः मानव ही नही समस्त प्राणियों के लिए जीवन-दायनी आक्सीजन उपलब्ध कराने वाले -तुलसी,आंवला और पीपल के पौधों को संरक्षित रखने की बात थी। ढोंगियों ने उनकी उपासना शुरू करा के उसका मखौल बना दिया है। भगवान-तुलसी विवाह की परिपाटी शोषकों को रोजगार उपलब्ध कराने का धंधा और जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ने का उपक्रम है। आज के वैज्ञानिक -मननशील युग मे भी प्रगतिशील लोगों द्वारा भी अवैज्ञानिक -अतार्किक -पौराणिक कुरीतियों का प्रचार जनता को जागरूक होने से रोकता और शोषकों की स्थिति मजबूत करता है।
बढ़िया जानकारी.
बहुत बढ़िया, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
अच्छी जानकारी के लिए आपका आभार ...
अच्छी जानकारी .बरसात के दिनों में जड़ वाली सब्जियां खानी चाहिए .खोद कर निकाले जाने वाली .
आज बहुत कुछ सार्थक और नया मिला मोनिका जी, हृदय से आभार आपका !
शुभ-विचारों की जानकारी के लिए .....
आभार और शुभकामनाएँ!
जानकारी का आभार।
अच्छी जानकारी....
बहुत अच्छी जानकारी को समेटे हुए अच्छी पोस्ट .. हमारी बहुत सी मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक कारण ही हैं ..पर हम स्वयं ही उन कारणों से अनजान हैं ..
धन्य हैं वे लोग जिन्होंने न केवल "सर्वे भवंतु सुखिनः" का उच्चार किया बल्कि सरल अशिक्षित जनता के लिये सुदृढ, स्वास्थ्यप्रद परम्परायें बनाकर दीं।
इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
बहुत सार्थक लेख...बधाई .
नीरज
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने,आभार !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
Badee achhee jaankaaree dee hai aapne!
ज्ञानपरक लेख । अफ़सोस हो रहा है कि आप की लेखनी से अभी तक लाभान्वित होने से वंचित रही! बहरहाल अपनी सांस्कृतिक धरोहर से पुन: साक्षात्कार करवाने के लिये आभार ।
बड़े ही सुन्दर तरीके से आपने हमारी प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा की जानकारी दी है... सुन्दर लेख
आदरणीय महोदया
प्रेम की उपासक अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!
भवदीय
(अशोक कुमार शुक्ला)
बहुत ही अच्छी जानकारी दी....हमारे हर त्योहार,अनुष्ठान के पीछे कोई ना कोई कारण होता है...जब ये पता चल जाए तो उनका पालन करना या उसके प्रति सकरात्मक रवैया रखना, आसान हो जाता है.
उपयोगी आलेख
achchi jaankari mili.......
jai hind jai bharat
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .....
सुन्दर जानकारी .सार्थक पोस्ट.
ज्ञानवर्धक सुन्दर रचना.....
क्या कहने, बहुत सुंदर जानकारी। सार्थक लेख
डॉ मोनिका शर्मा जी अभिवादन आनंद आ गया ..सच कहा आप ने हमारे धर्म में बहुत सी चीजें ऐसी जोड़ी गयी हैं जिनका वैज्ञानिक महत्त्व है..आस्था और धर्म से लोग इन से पीपल तुलसी नीम आदि से ..बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
आज हम सबको इस बात की जानकारी है की (पीपल , तुलसी ,आंवला ) ये सभी औषधीय पौधे हैं | इन सबको पूजा जाना भी कहीं न कहीं स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का सन्देश देता है
सही आंकलन ! हमारे संकृति और रिवाज के पीछे स्वास्थ्य और सुरक्षा ही रही होगी !बधाई !
भारतीय त्योहारों की यह विशेषता है कि प्रत्येक का कुछ सामाजिक, स्वास्थ्य और मौसम से जुडा होना..बहुत सुंदर ग्यानवर्धक आलेख...
देवउठनी एकादशी एवं इसके व्यावहारिक पक्ष पर भी बहुत अच्छी जानकारी । आभार ।
बहुत अच्छी जानकारी ,आभार .
बढिया जानकारी भरा पोस्ट।
धार्मिक मान्यताएं वैज्ञानिकता के करीब हैं....
सुंदर प्रस्तुति।
आभार...........
सुन्दर ज्ञानवर्धक जानकारी.........
आज मेने भी एक छोटी सी कविता लिखी ,,,,,जरुर देखे "
लोक परम्पराओं में जाने कितनी उपयोगी औषधियों की हम पर्व और उत्सव के रूप में पूजा करते रहे हैं , चातुर्मास संपन्न होने की बधाई!
उपयोगी सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक जानकारी, साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी है। आजकल लोगों को ये बातें पता ही नहीं हैं। जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया इस जानकारी के लिए ... सभी तथ्यों को आपने विज्ञानिक तरीके से तथ्यों के साथ रखा है ... अपनी परम्पराओं को जीवित रखने की जरूरत है आज ..
रोचक तरीके से परम्परा और अनुष्ठान की जानकारी दी ......
इसकी व्यावहारिक जानकारी आज ही मिली हैं हमे...........आभार आपका......बाकी देवों के सोने और उठने वाली बात ही सुनी थी हमने तो |
dhanyavad bahut hi umda jankari ........bahut si nayi baate bhi pata chali .kitna gaharai se aapne varnan kiya aur swasth ke bare mai bhi ....sahi jankari judi hui mil gayi . itni sartha aalekh ke liye badhai .
aapko join karne se itni acchi post aaj hum padh sake ...........:)
खूबसूरत जानकारी का बहुत - २ शुक्रिया दोस्त |
महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी... गहन रचना सुन्दर आलेख के लिए बधाई...
डॉ. मोनिका शर्मा जी,
क्या आप जानती हैं कि आपके ब्लॉग का गूगल पेज रैंक 1/10 है | आप खुद निम्न लिंक पर देखिए |
http://1.bp.blogspot.com/-ZsDnpZy5rTs/Trn7IklDekI/AAAAAAAACUs/ilmhjBH4Pmg/s1600/dr_monika_sharma.png
टिप्स हिंदी में
अच्छी पोस्ट आभार !
बहुत ही अच्छी जानकारी ... आभार ।
डॉ मोनिका साहिबा शुक्रिया इस पोस्ट के लिए मेरे चिठ्ठे पर आपकी दस्तक के लिए .
स्वास्थ्य की देखभाल और जागरूकता के लिए भी चतुर्मास का बड़ा महत्व है | इन चार महीनों में कंद मूल और हरी सब्जियों से परहेज के लिए कहा जाता है | क्योंकि वर्ष का यही समय होता है जब जीवाणुओं का प्रकोप सबसे ज्यादा होता है | ऐसे में अपच, अजीर्ण और वायुविकार जैसी स्वास्थ्य समस्याएं वातावरण में आद्रता के चलते बढ़ जाती हैं |
वैज्ञानिकता के साथ बनाये गये हैं ये नियम
वैज्ञानिक तथ्यों ने विषय को और भी रोचक व उपयोगी कर दिया.
बहुत ही सुन्दर और उपयोगी जानकारी दी है आपने ....आभार
Great post giving full logical reasons behind all the activities involved :)
Nice read !!
PS: Been away from blogosphere in past few days, hope u doing fine !!
बहुत सुन्दर जानकारी परक पोस्ट है मोनिका जी. पेड़-पौधों की पूजा से निश्चित रूप से पर्यावरण और आयुर्वेदिक उपयोगिता को सिद्ध होती है. वैसे भी ईश्वर प्रकृति के ही रूप में हमारे समक्ष मौजूद है.
धर्म और कर्म के तालमेल पर महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने.
बहुत बढ़िया और रोचक !!
मेरे ब्लॉग को यहाँ पढ़े
manojbijnori12 .blogspot .com
बहुत सुन्दर/बढ़िया जानकारी.Thanks.
चतुर्मास के बजाय चातुर्मास शायद ज्यादा सही होता. आपके भी उपवास पूरे हुए, बधाई. उचित समझे तो व्रत-उपवास के साथ ध्यान भी किया करें.
चातुर्मास की उत्तम जानकारी के लिए बहोत-बहोत धन्यवाद |
बहुत ही अच्छी पोस्ट, इतने अच्छे लेखन के लिए बहुत-बहुत बधाई. शंब्दो का चयन प्रसंग अति उत्तम बैज्ञानिक दृष्टि कोड.
फिर से एक सुन्दर आलेख के लिए बधाई स्वीकार करें.
हम अपने सुंदर संस्कारों से सुपोषित होते रहें, निरंतर।
बढि़या आलेख।
अध्यात्म से ओट प्रोत आलेख... ईश्वर जग का कल्याण करें
सुंदर जानकारी और वह भी तथ्यों के साथ. मोनिका जी आपका जवाब नहीं.
बढ़िया जानकारी के लिए आभार आपका
ईश्वर नित्य जाग्रत है,प्रतिपल हमारी सुधि ले रहा है। हम अपनी सहूलियत के लिए उसे कुछ विश्राम दे दें,तो बात और है।
हरि ओम् तत्सत!
संग्रहणीय पोस्ट!
सुना पढ़ा ही था चतुर्मास शब्द
आज विस्तृत जानकारी मिली
आभार
साधुवाद आपका इस सुन्दर आलेख के लिए...
आजकल लोग ऐसी बातों को दाकियानूसी अंध विश्वास कह बिना इसका सामजिक, आर्थिक या आध्यात्मिक महत्त्व जाने mana तो कर देते हैं,परन्तु घाटे में स्वयं ही रहते हैं..
eratak.blogspot.com
अम्मा मनाती थी देवुठान एकादशी .
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