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30 May 2011

पैसिव स्मोकिंग ......बिना ख़ता के सजा .....!





पैसिव स्मोकिंग की समस्या जिसे वैज्ञानिक भाषा में सैकंड हैंड स्मोकिंग भी कहते हैं, उन लोगों के लिए सजा बन रही है जो खुद स्मोकिंग नहीं करते हैं। सैकंड स्मोकिंग यानि कि वह धूम्रपान जो व्यक्ति खुद नहीं करता पर दूसरे द्वारा धूम्रपान किए जाने पर उसके धुएं की ज़द में आ जाता है ।

पैसिव स्मोकिंग खासकर तब ज्यादा खतरनाक हो जाती है जब धूम्रपान करने वाला व्यक्ति घर का ही कोई सदस्य हो। नॉन स्मोकर्स जो कि धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के दोस्त, रिश्तेदार,सहकर्मी या फिर घर सदस्य होते हैं बिना खता के गंभीर बीमारियों की सजा पाते हैं।

सैंकड हैंड स्मोंकिंग की वजह से बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। आमतौर पर पेरेंटस का सोचना होता है कि अगर वे घर से बाहर जाकर धूम्रपान करते हैं ,  तो बच्चे पैसिव स्मोकिंग के खतरों से सुरक्षित रहते हैं। जबकि हकीकत यह है कि बच्चों की गैरमौजूदगी में धूम्रपान करने वाले अभिभावकों के बच्चे भी पैसिव स्मोकिंग के अनगिनत दुष्प्रभाव झेलते हैं।

धूम्रपान करने वाले अभिभावकों के घरों में सांस लेने वाली हवा में खतरनाक स्तर का निकोटीन पाया जाता है। निकोटीन के ये नुकसानदेह तत्व माता-पिता के कपङों और अन्य सामान में भी चिपके रहते हैं।

सैकंड हैंड स्मोकिंग से हमारा पूरा परिवेश ही प्रदूषित रहता है। यही वजह है कि इसे ईटीएस यानि कि एन्वॉयरमेंटल टॉबेको स्मोक भी कहा जाता है।

आज भी सैकंड हैंड स्मोकिंग को ज्यादा विचारणीय नहीं माना जाता। लोगों के मन यह सोच होती है अगर वे स्वयं धूम्रपान नहीं करते तो उसके खतरों से भी सुरक्षित हैं। स्वयं धूम्रपान करने वाले खुद भी नहीं जानते कि वे अपने परिवार, समाज , पर्यावरण और मासूम बच्चों की सेहत को जाने अनजाने कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं...........और उनके अपनों  को बिना ख़ता के सजा मिल रही है |  


कृपया धूम्रपान के खतरों से स्वयं को ......पर्यावरण  को और हमारे परिवारों को बचाएं...... विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक अपील.....!


99 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब पता नहीं लोग समझते नहीं या समझना नहीं चाहते इस बारे में..

Arun sathi said...

सच मे लोग खता नही मानते
विचारणीय लेख।

समय चक्र said...

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक अपील...बहुत सामयिक पोस्ट ... इसी तरह की पोस्टें जन जागरण के बहुत ही उपयोगी हैं . बहुत ही आभारी ..

अजित गुप्ता का कोना said...

सच है बिना खता के ही अन्‍य लोगों का सजा मिलती है।

सुज्ञ said...

समस्या गम्भीर है, जाग्रतिप्रेरक आलेख

Urmi said...

बहुत सुन्दर, महत्वपूर्ण और विचारणीय लेख! उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Fani Raj Mani CHANDAN said...

Your article reminds me of TV commercial on the passive smoking in which an old man forcibly feed an smoker and when the smoker tries to oppose then he says "Agar tum bina meri marzi ke mujhe dhuan pilaa sakte ho to tumhe bhi meri marzi se khaana padega"

There was a law to stop smoking in public places, it seems there is lack of awareness in people on this law cause I still see a people smoking in public places.

Very nice article on World No Tobacco Day.

Regards
Fani Raj

Yashwant R. B. Mathur said...

बिलकुल सही बात कही आपने.हम सभी जाने अनजाने पैसिव स्मोकिंग की चपेट में आ ही जाते हैं.आवश्यकता खुद को और दूसरों को जागरूक करने की है.

सादर

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

मोनिका जी,
आपने बेहद गंभीर और ज्वलंत विषय को उठाया है !
आपने सही लिखा है जो लोग स्मोकिंग नहीं करते वो इसकी सज़ा क्यों भुगतें !

Dr Varsha Singh said...

आपने सही कहा कि पैसिव स्मोकिंग उन लोगों के लिए सजा बन रही है जो खुद स्मोकिंग नहीं करते हैं। स्मोकिंग करने वालों को इस बारे में कम से कम एक बार तो सोचना चाहिए.

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत अच्छा और प्रेरक आलेख!

रावेंद्रकुमार रवि said...

. * . * . * . * . * .

रश्मि प्रभा... said...

ek disha per sahi soch

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक अपील ... जागरूक करती पोस्ट

sweet_dream said...

सुंदर पोस्ट लेकिन जो लोग पीते हैं वो नही समझते दिमाग ठ्स्स होने लगता है बिना पिये

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


चिट्ठे आपके , चर्चा हमारी

तरुण भारतीय said...

बिलकुल सही कहा ....बहुत बार बसों आदि में हमको भी ये सजा भुगतनी पड जाती है ....हालांकि बहुत से लोग तो समझाने से मान जाते हैं ...लेकिन फिर भी कुछ पलों के लिय तो सजा मिल ही जाती है

Shalini kaushik said...

vicharniy post kintu koi bhi vichar nahi karta is samasya par .aabhar

Jyoti Mishra said...

very timely posted !!
I feel so blessed that no one in my whole family either smokes or drinks.

In this case people are not ignorant, rather they are careless. In spite of knowing the side-effects I don't know what pleasure they get in taking such shit things.

Shikha Kaushik said...

jagruk karti post .aabhar

G.N.SHAW said...

मोनिकाजी बहुत ही सुन्दर बिषय ..मै इस तरह के परिवेश ..को बिरोध करने से नहीं चुकता !कई बार कुछ स्मोकरो से झगड़े भी हो जाते है !

vijai Rajbali Mathur said...

प्रेरक एवं अनुकरणीय पोस्ट से पूर्ण सहमति है.आपकी अपील का हार्दिक समर्थन करते हैं.

संध्या शर्मा said...

बिलकुल सही बात कही है आपने.... हम सभी को जाने अनजाने पैसिव स्मोकिंग के दुष्प्रभाव झेलने ही पड़ते है....इस गंभीर समस्या के प्रति जागरूक होने की अत्यंत आवश्यकता है....महत्वपूर्ण और विचारणीय लेख.....

shikha varshney said...

मोनिका जी इसी समस्या की वजह से अब यहाँ तो ज्यादातर जगह पर स्मोकिंग मना हो गई है. पर हाँ घर पर अभी भी बनी हुई है हालाँकि समझदार लोग ख़याल रखते हैं.
अच्छा आलेख.

Suman said...

bahut badhiya sarthak post....

Rajesh Kumari said...

Monika ji,vishva tambaaku divas par janjaagrat karti hui post bahut saraahniye ,ati uttam hai.bahut achcha likha.aabhar.

Minakshi Pant said...

is khubsurat jankari ke liye shukriya dost :)

दिवस said...

ये बहुत सही लेख लिखा आपने...मैं तो खुद परेशान हो चूका हूँ इस पैसिव स्मोकिंग से...मेरे अधिकतर दोस्त धूम्रपान करते हैं...कभी ऑफिस के बाहर, कभी किसी दोस्त के घर, कभी कार में, तो कभी पता नहीं कहाँ-कहाँ? मैं खुद सिगरेट नहीं पीता किन्तु पीने वालों के साथ खड़े रहने से ही उसकी चपेट में आ जाता हूँ...अब बताइये क्या करें? अच्छा आलेख...स्मोकर्स को सोचना चाहिए कि खुद तो धुंएँ के साथ मर ही रहे हैं, अपने पास वाले को भी फ़ोकट में मार रहे हैं...

vandana gupta said...

समसामयिक पोस्ट्।

rashmi ravija said...

बहुत ही सामयिक पोस्ट..
इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है .

सदा said...

बिल्‍कुल सही कहा है आपने ...विचारात्‍मक प्रस्‍तुति ।

प्रतुल वशिष्ठ said...

डॉ. मोनिका जी,
आपकी अपील ने मेरी विवशता को रुला दिया...
"जब बड़े अधिकारी ऑफिस के कक्ष में सिगरेट पीते हुए बहुत देर तक जमे रहें ... तब एक्सोज़ फेन सालाना भी बेकार हो जाता है."

घर पर किरायेदारों को 'धूम्रपान न करें' कहने का तो हौसला है लेकिन इस आज़ाद देश में आम नागरिक को बस-स्टेंड, बस के भीतर, अन्य सार्वजनिक स्थानों पर कहना भारी पड़ जाता है.. सभी शिक्षित और सभ्य जो ठहरे.. प्रकृति प्रेम उनकी रग-रग में बसता है.. जगह-जगह सिगरेट-बीड़ी के टोटे, गुटके-तम्बाकू के सुन्दर पाउच और पान की पीक के निशानों से अपनी प्यारी धरा पर रंगोली सजाते रहते हैं. धन्य हैं ऐसे सदा-स्वतंत्र भारतवासी.

कमलेश खान सिंह डिसूजा said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति : सच में तम्बाकू एक भयावह सच है जिसे हम नकार नहीं सकते |

जीवन और जगत said...

सार्वजनिक स्‍थल पर धूम्रपान के प्रतिबंध के बाद लोगों ने घर के भीतर धूम्रपान अधिक करना शुरू कर दिया है। इससे सबसे ज्‍यादा खतरा परिवार के सदस्‍यों को है। हालांकि सार्वजनिक स्‍थल पर धूम्रपान निषेध का कानून कितना अमल में लाया जा रहा है, यह सभी का पता है।

रूप said...

How can this b controlled,if govt.s don't care. Good going! A commendable article.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मोनिका ,सही लिखा है ...ये सच हम सब जानते हैं पर तब भी इससे अनजाने ही बने रहते हैं ....कम से कम अब तो जागरूक हो जायें !

Manoj Kumar said...

सही है !

उपयोगी आलेख.

Sawai Singh Rajpurohit said...

मोनिका जी,
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक बहुत सुंदर, बेहतरीन संदेश

राज भाटिय़ा said...

आप से सहमत हे, युरोप (जर्मन) मे ज्यादातर घरो के अंदर लोग स्मोकिंग (धूम्रपान ) नही करते, ओर अब तो पिछले १०,२० सालो से आम स्थान पर भी, रेस्ट्रारेंट ,डिश्को,होटल, बस, रेल, ओर पब्लिक स्थानो पर भी धूम्रपान सख्त मना हे, अगर आप किसी धूम्रपान करने की वजह से परेशान हे तो उसे टोक सकते हे... लेकिन फ़िर भी इस के नुकसान तो परिवार वालो को भुगतने ही पडते हे, एक अति सुंदर लेख, धन्यवाद

ASHOK BAJAJ said...

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर आपका यह लेख प्रेरणादायी एवं सराहनीय है है .

प्रवीण पाण्डेय said...

सत्संग का असर तो होगा ही।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अच्छा हो कि लोग [धूम्रपान करने वाले] इस विषय पर ध्यान दें और धूम्रपान नहीं करने वाले इनका बहिष्कार करें ॥

Maheshwari kaneri said...

‘बिना खता के ही लोगों को सजा मिलती है।‘ बहुत सुन्दर विचारणीय लेख….. धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

आज का सार्थक लेख ... बहुत विचारणीय बात कह है आपने ... दूसरों का सोचना भी ज़रूरी है ... इसलिए धूम्रपान जो करते हैं सोच समझ कर करें ...

Sadhana Vaid said...

मोनिका जी आपने बहुत ही महत्वपूर्ण एवं गंभीर समस्या के बारे में जानकारी दी है ! आपका बहुत बहुत आभार !

Arvind Jangid said...

बहुत ही उपयोगी पोस्ट. वैसे तो हमें ये अधिकार नहीं है की हम खुद के शरीर को नशे में खराब करे क्योँ की ये हमारा नहीं है. ये ईश्वर ने हमें दिया है. कोई अगर न समझे तो उसे कम से कम दूसरों के जीवन से खिलवाड़ करने का अधिकार तो कतई नहीं है....आभार.

Smart Indian said...

जागृति और कडे कानून, दोनों की ही आवश्यकता है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

baat bahut pate ki kahee aapne...chahe jaise bhi ho, smoking buri hai.....active ya passive

उपेन्द्र नाथ said...

बिल्कुल सही कहा। विचारणीय व सुन्दर प्रस्तुति।

गिरधारी खंकरियाल said...

यदि बस में सफ़र कर रहे है तब कोई धुम्रपान करता है तो धुंए की टांस सीधे दिमाग को असर करती है इसीलिए लोगो को उल्टियाँ भी हो जाती है सोचिये कितना खतरनाक है .

Kailash Sharma said...

बहुत सार्थक प्रस्तुति..

अंकित कुमार पाण्डेय said...

:(

naresh singh said...

मै स्वय बचपन में इसका भुक्तभोगी रहा हूँ |क्यों कि मेरे पापा जी चेन स्मोकर है |

Anonymous said...

har koi firk ko dhuye main uda raha hain aur sath main jindagi gava raha hain

आशुतोष की कलम said...

पैसिव स्मोकिंग ज्यादा खतरनाक है ..पिने वाला तो फिल्टर धुआं अन्दर लेता है मगर पैसिव स्मोकर सिर्फ जहरीला अन्फिल्टर धुआं..

virendra sharma said...

एक एक्स धूम्र पानी के तजुर्बे से मैं यह कहूंगा -जैसे बीमारियों में मधुमेह सब रोगों की माँ है वैसे ही ऐबों,कुटेबों में स्मोकिंग है .एक धूप बत्ती सारी हवा को सुवासित कर देती है और एक सिगरेट सारे परिवेश को नष्ट कर देती है .दूसरों के संस्कार काटती है सिगरेट .करे मुल्ला पिटे जुम्मा .जब हम धूम्र पान करते थे ,मूर्खता के शिखर पर थे ,सरे आम करते थे ,इसे अपना बुनियादी हक़ समझते थे कोई टोकता तो कहते भाई साहब अपनी सोसल टोलेरेंस बढ़ाओ .हम सारे अल्पसंख्यक इकठ्ठा हो जाते न पीने वालों की नाक में दम कर देते ..विभाग में बतौर व्याख्याता सबसे छोटे थे (बीस बरस के होते होते व्याख्याता बन गये थे और पहला काम यह किया अपने वयस्क होने का एक सबूत जुटाया .कोई न कोई हीरो रहा होगा घर में ही हीरो हमारा .बाहर उन दिनों देवानंद साहब थे -मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ,हर फ़िक्र को धुएं मैं उडाता चला गया,गाइड में तो उनके सिगरेट पीने का अंदाज़ ही अलग था . .बंद कमरों में खूब धूम्रपान कियाहमने ,तिस पर तुर्रा यह खुद को इन्तेलेक्च्युअल भी मानते थे .छल्ले बनाते थे धुएं के ।
एक दौर आया हालाकि हम सिगरेट छोड़ चुके थे ,पत्नी के चले जाने केबाद .लेकिन एक तरफ स्मोकिंग स्टेंस नेहमारी मुक्तावली को मुक्त नहीं किया दूसरी तरफ दंतावाली भी गई .गम डिजीज के हवाले . दूसरी तरफ बंद धमनियों ने हमारा बीस क्या पच्चीस साल बाद भी पीछा किया .७० %बंद धमनी हो तो गुज़ारा हो जाता है यहाँ तो एक १००%,दूसरी ९०%तथा तीसरी ७०%बंद थी .उसी के सहारे हम एंजाइना झेल भोग रहे थे .ओपन हार्ट सर्जरी हुई ।
छोटी बिटिया जब तक भारत में रही क्रोनिक ब्रोंकाइटिस (श्व्शनी शोथ) से ग्रस्त रही .अब यहाँ अमरीका की साफ़ हवा में ज़िंदा है ।ब्रों -काई -टिस हमें तो घेरे ही रही .
लेकिन हमारे दो पौते उतना नसीब लेकर नहीं आये ,दोनों दमे से ग्रस्त रहतें हैंबेशक दमा हमारे पिताजीको भी था ,जो डीएम के साथ ही गया पहले नहीं सिगरेट वह भी पीते थे ,पोतों के नाना को भी हैदमा .लेटेस्ट खबर यह है अब मछली चिकित्सा के लिए हैदराबाद जा रहें हैं .होम्यो -पैथी ,एलो -पैथी और आयुर्वैदिक चिकित्सा की त्रिवेणी बच्चों ने उनपे आजमाई है .विशेष कुछ निकला नहीं है ।
तो ज़नाब पीढ़ी दर पीढ़ी पीछा नहीं छोडती है यह लत .मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया ...
रेड एंड वाईट पीने वालों की बात ही कुछ और है ........भरमाने वाले बहुत हैं .समझाने वाले बहुत कम हैं ।
डॉ .मोनिका सिंह सारगर्भित पोस्ट के लिए आपका आभार .

Vaanbhatt said...

आज अखबार में किसी कैंसर पीड़ित का लेख पढ़ा...उसकी बात एकदम जायज़ थी...कि कुछ टैक्स के लिए सरकार अपनी भावी पीढ़ी को ख़राब करने को भी तैयार रहती है...

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

अपने क्षणिक सुख के लिए दूसरों को संकट में डालना !!! ,पता नहीं लोग कब समझेंगे.जन हित और विश्व हित में लिखा गया उद्देश्यपूर्ण आलेख.

अरुणेश मिश्र said...

Upyogi lekh.

Coral said...

बहुत सुन्दर लेख.... बड़े बच्चे जल्दी नहीं समझते ना ....

Anonymous said...

बहुत सार्थक लेख हमेशा की तरह......

नश्तरे एहसास ......... said...

An Applaudable Article.......
people are still ignoring it n continuing to smoke inspite of knowing all the worst results that can come to them.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सच में बहुत ही बेहतर जानकारी मिली। शुक्रिया

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सच में बहुत ही बेहतर जानकारी मिली। शुक्रिया

वीरेंद्र सिंह said...

Very meaningful post....Congrats.

वीना श्रीवास्तव said...

पता नहीं लोग समझकर भी क्यों नहीं छोड़ पाते...

अभिव्यक्ति said...

we all know about it but.......the problem is that we never try to tell a singal person about the harms of smoking.........

डॉ टी एस दराल said...

इसीलिए नो स्मोकिंग ज़ोन बनाये जाते हैं । पैसिव स्मोकिंग से भी बचना ज़रूरी है ।

Sunil Kumar said...

विचारणीय लेख....

Dr Varsha Singh said...

आपका यह लेख एक कोशिश है समाज में जागरूकता फ़ैलाने की ...
बहुत सार्थक सन्देश !

ज्योति सिंह said...

kash is apil ko gambhirta se liya jaata aur sudhar pe dhyaan jiya jata to kai rog kam ho jaate .badhiya lekh
कृपया धूम्रपान के खतरों से स्वयं को ......पर्यावरण को और हमारे परिवारों को बचाएं...... विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक अपील.....!

ज्योति सिंह said...

kash is apil ko gambhirta se liya jaata aur sudhar pe dhyaan jiya jata to kai rog kam ho jaate .badhiya lekh
कृपया धूम्रपान के खतरों से स्वयं को ......पर्यावरण को और हमारे परिवारों को बचाएं...... विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर एक अपील.....!

Vivek Jain said...

गेहूँ के साथ घुन तो पिसता ही है,

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

अरुण चन्द्र रॉय said...

सच कह रही हैं आप.... पैसिव स्मोकिंग भी उतना ही खतरनाक है...

Amrita Tanmay said...

हमेशा की तरह...अच्छा लिखा है...

s.n. shukla said...

hallo

डॉ. दलसिंगार यादव said...

बरसात का मौसम था और गौरैया अपने घोंसले में बैठी थी। बंदर भीग रहा था। उसके पास तो घर नहीं था। गौरैया ने बंदर को सलाह दे दी कि भगवान ने हाथ पैर दिए हैं घर क्यों नहीं बना लेते। बंदर को सलाह अच्छी नहीं लगी और ग़ुस्से में आकर उसने गौरैया का ही घोंसला उजाड़ दिया। अतः संस्कृत में एक कहीवत है - उपदेशो ही मूर्खाणां प्रकोपाय न शांतये। जब सिगरेट पीने वालों को अपने ही सेहत का ख्याल न हो तो वे दूसरों के बारे में क्या सोचेंगे। यह तो उन लोगों का कर्तव्य और अधिकार भी है कि धूम्रपान करने वालों से कहें कि आपको अपने सेहत और परिवार की चिंता भले ही न हो, हमें अपनी सेहत और परिवार की चिंता है। अतः हमारे पास धूम्रपान न करें क्योंकि पैसिव स्मोकिंग सिगरेट पीने से भी ज़्यादा ख़तरनाक है क्योंकि मुंह से मोनोऑक्साइड बन कर निकलती है।
आपने अच्छा विषय चुना। बधाई।

ashish said...

beautiful and meaningful post. passive smoking is as dangerous as active smoking. awareness about it is extreme necessity of keeping our society healthy,

Rachana said...

bahut jaruri poet hai .aapki baat sabhi ko sunni chahiye
rachana

प्रतुल वशिष्ठ said...

छोटी कहानी के माध्यम से कही गई डॉ यादव जी की सारगर्भित बात अच्छी लगी.

अशोक सलूजा said...

२३ फरवरी १९८२ को छोड़ी थी स्मोकिंग ....एक अच्छा सन्देश |

जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

पैसिव स्मोकिंग .....बिना खता की सजा '

बिलकुल सही लिखा है आपने ...लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए |

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

इसके सबसे ज्‍यादा शिकार बच्‍चे होतेहैं, पर खुदगर्ज बाप फिरभी नहीं सोचता।

---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।

Kunwar Kusumesh said...

"पैसिव स्मोकिंग" हर बार नया और ज़रूरी विषय आप चुनती हैं.वाह मोनिका जी,मैं अगर प्रकाशक होता तो आपकी किताब छापता .

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

बहुत से धूम्रपान करने वाले passive smoking के बारे में अनभिज्ञ होते हैं. उन्हें भी जागरूक करने की उतनी ही ज़रूरत है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

सामयिक और उपयोगी आलेख।
धूम्रपान करने वालों और उनके नजदीक रहने वालों को सचेत रहना होगा।

Arvind Mishra said...

भारत में तो अब इसके विरुद्ध स्पष्ट क़ानून है मगर समस्या बनी हुयी है

कुमार राधारमण said...

हम कुछ भी कर लें,बचना संभव नहीं है। कभी कहीं पढ़ने में नहीं आया कि सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान न करने का उल्लंघन होने पर आज तक किसी का चालान किया गया हो।

रंजना said...

सार्थक आह्वान !!!!

आपके आह्वान में हम भी अपना स्वर मिलाते हैं...

लोग अपने,अपने परिवेश और अपने अपनों के विषय में सोच पायें...ईश्वर सबको सद्बुद्धि दें..

Anonymous said...

स्मोकिंग के दुस्परिणामों के प्रति आगाह करता प्रभावशाली लेख

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

aapne bahut sahi baat sheyar kee...vakai kai log is vishay me jaante nahi...aur jaante bhi hain to laaparvahi hiti hai... Sadar...

पूनम श्रीवास्तव said...

monika ji
aapke blog par aakar nit naye vishhhyo ki jankaari se dil ko bahut hi sakun milta hai
yah to aapki lekhni ka hi kamaal hai jo bhanumati ke pitare ki tarah ek k
baad ek ki tarah khulta hi chala jata hai .
aapne bahut hi bareeki ke saath is paisiv smoking ke baae me likha hai .
jahan tak mera manana hai ki bahut se hi log is jakari se achhute honge .
itni badi baat jaankar kam se kam logo ko sachet jarur ho jana chahiye.
bahut hi anukarniy parstuti ke liye
hadik badhai
poonam

virendra sharma said...

Recent research suggests passive smokingis no less injurious than active .It contains (1)primary smoke inhaled by smoker .(2)secondary smoke exhaled (3)side stream smoke between two puffs .The no .of carcinogens in second hand exceeds all others .
Thanks for yr appreciation for my Hindi couplets .

रचना दीक्षित said...

स्मोकिंग के खतरे से तो लोग वाकिफ है पर पैसिब स्मोकिंग से उतना नहीं. जबकि दोनों ही उतने ही खतरनाक. जागरूक करती सुंदर आलेख के लिए बहुत बधाई.

निर्मला कपिला said...

फिर भी लोग खता करने से बाज नही आते। बहुत सार्थक सन्देश है। शुभकाम.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

इस विषय पर सार्थक विचारों को साझा करने का आप सबका आभार

VIJAY PAL KURDIYA said...

इस जानकारी के लिए आपका आभार |

Amrita Tanmay said...

विचारणीय,उपयोगी पोस्ट..

Unknown said...

dr.monika ji vasatav m aapaki parivar ke baare m hi nahi dusare logo ke baare m bhi chinta hai ,sadhuwad swikar karen

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