बचपन की प्यारी यादों का पिटारा जिन अनगिनत बातों को समेटे रहता है उनमें से एक दादी-नानी से सुनी कहानियां भी होती हैं । कहानियां जो समाज की व्यवस्था से लेकर परिवार और व्यवहार तक, जीवन के हर पहलू की सीख दिया करती थीं। घर के बङे बुजुर्गों के सान्निध्य में हर पीढी किस्सा कहानी सुनती आई है। पहले संयुक्त परिवार हुआ करते थे इसलिए शाम ढलते ही मंडली जम जाया करती थी और बच्चे सब कुछ भूल कर रम जाते थे इन कहानियों में।
बचपन भले ही बेफिक्र होता है पर जाने अनजाने कई समस्याओं से जूझता भी रहता है। उनके मनोविज्ञान को रूपायित करने वाली कहानियां कब उन्हें इन उलझनों से बाहर ले आती हैं पता ही नहीं चलता। यकीन मानिए छोटी छोटी कहानियां बच्चों के जीवन की कई बङी समस्याओं का संक्षिप्त हल हैं।
मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्तर कहानियों में की गई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरी जगह बना लेती है। यही वजह है कि बच्चे कहानियां सुनते ही नहीं गुनते भी हैं ।
हमारे देश में किस्सों कहानियों का जितना समृद्ध इतिहास है दुनिया भर में शायद ही कहीं मिले। मनोरंजन के साथ ही जीवन जीने की सीख देने वाली कहानियां टीवी और इंटरनेट के जमाने में कहीं गुम हो गयी हैं पर इनका महत्व ना तो कम हुआ है और ना ही कभी होगा।
मेरा अनुभव-
पिछले कुछ महीनों से खुद अनुभव कर रही हूं कि कहानियां काम करती हैं.......सच में काम करती हैं। चैतन्य को रोज कहानी सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ तो उसमें कई बदलाव नज़र आने लगे। मैंने बच्चों की कई कहानियां पढीं और खुद भी रचीं। उसे जिन चीजों से डर लगता था उसे दूर करने के लिए खास किस्से बुने। परिवर्तन देखने लायक था। उसको नये शब्द मिले । कहानी सुनने के दौरान उसे इतनी उत्सुकता रहती है कि सब कुछ अच्छा रहे कुछ नकारात्मक न हो। वरना तो झट से टोक देता है। आजकल खुद नई कहानी बनाकर मुझे सुनाने लगा है। कई सारे पात्रों को समेटे उसकी कहानियां सकारात्मक और शब्दावली बहुत प्रभावी बन रही है। सच में यह बदलाव बहुत सुखद अनुभूति देने वाला है।
सच में कहानियां काम करती हैं.......बस जरूरत इस बात की होती है कि हम बच्चे की रूचि और मनोविज्ञान को समझकर कहानी सुनायें। अभिभावक बच्चे की किसी खास कमजोरी पर ध्यान देकर ऐसी कहानियां बुनें जो उनमें आत्मविश्वास फूँक दें। मेरा अनुभव तो यही है कि कहानियां सुनकर बच्चों में उनका अपना एक दृष्टिकोण पनपता है। उनकी शब्दावली बढती है। एक नई कहानी खुद रचने और उसका कोई परिणाम खोजने की सोच जन्म लेती है। कहानी का एक संतुलित अंत करने के विचार को बल मिलता है मानो उन्हें स्वयं अपनी राह बनाने की सोच और शक्ति मिल रही हो।
115 comments:
sahi kaha aapne
एकदम सच कहा है. हमारे देश में तो कहानिया बनी ही इसलिए कि बच्चों को सुना कर उन्हें प्रेरित किया जाये.बच्चे भी उन्हें सुनना पसंद करते हैं बस हमारे पास ही समय नहीं होता.आज भी बचपन में सुनी कहानियों से सीखी हुई सीख याद है.और वह व्यक्तित्व निर्माण में बेहद सहायक होती है.
सुन्दर सार्थक पोस्ट लिखी है आपने.
शिक्षाप्रद कहानियों का प्रभाव बच्चों पर बहुत अधिक पड़ता है | मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान भी बढ़ता है इसमें कोई शक नहीं ...
सुदर आलेख, आभार
आपने पोस्ट के माध्यम से बिलकुल सही बयाँ किया है .......बचपन में मुझे भी मेरे दादा जी व् नानी जी कहानियां सुनाया करते थे |....बहुत अच्छा लगता था और मन में कई तरह के सवाल भी उठा करते थे |
.............धन्यवाद
बिलकुल सही कहा आपने.कभी कभी कहानियां बच्चों के मनोरंजन के साथ साथ उनकी जिज्ञासाओं का समाधान भी करती हैं.
पर अफ़सोस यह कि मेड के भरोसे रहने वाले आज के बच्चों को कहानियां सुनाये कौन?
सादर
जी हाँ अप से पूर्णत सहमत |
"" कहानियां जो समाज की व्यवस्था से लेकर परिवार और व्यवहार तक, जीवन के हर पहलू की सीख दिया करती हैं ...""
बिलकुल सौ टके की बात ...सहमत हूँ ....आभार
यह एक दम सही बात है। पोस्ट को पढ़कर बचपन की यादों में खो गया जहां चाची के द्वारा प्रति दिन शाम मंे कहानी सुनाई जाती जिसमें चिक्सों रानी की कहानी प्रमुख थी। आपके ब्लॉग से मिली प्रेरणा से उन कहानियों को जल्दा ही पोस्ट पर लाउगा....
आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ, कहानी एक अच्छा और शशक्त माध्यम है बालमन को किसी भी बात को सिखाने का उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने...सार्थक आलेख, आभार |
bilkul sahi
जाट देवता की राम-राम,
हर कहानी कुछ कहती है।
वाकई काम की हैं ...यदि श्रोता सही तरह सुन लें ...
:-)
आपके अनुभव को मेरी पत्नी ने भी महसूस किया है और एन सी ई आर टी में सर्व शिक्षा अभियान के तहत किये एक सर्वेक्षण में यही सब बातें मुझसे की थीं. आज आपने अपनी मुहर भी लगा दी कि 'कहानियाँ काम करती हैं'. 'कहानियों का असर बच्चों पर तुरंत होता है'. 'कहानियां सुनकर बच्चों में उनका अपना एक दृष्टिकोण पनपता है।' 'उनकी शब्दावली बढती है।'
किस्से कहानियों का सभी के जीवन में बहुत महत्व है,विशेषकर बच्चों के. बच्चों का मन अति निर्मल होता है,वे कहानी पर अनजाने में जितना ध्यान देकर खुद को उससे जोड़ लेतें हैं,यह बड़ा विलक्षण है.अच्छे अच्छे किस्से कहानियों से बच्चो का तीव्र विकाश होता है.
आपने सुन्दर और विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है. इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
सही कहा ..कहानियाँ बच्चे बहुत ध्यान से सुनते हैं और उस पर अमल भी करते हैं ...बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार ही कहानिया सुनानी चाहिए ...चैतन्य को शुभकामनायें ...उसकी गढ़ी कहानी कभी पोस्ट करें ;)
नित एक कहानी से न जाने कितने संस्कार चले जाते हैं बालमन में।
सब कुछ बदल गया. पता नही समय आगे चला गया कि हम पीछे रह गये..
आप की बात से सहमत हुं, मै ने भी जितनी कहानिया बचपन मे सुनी थी, वो सब अपने बच्चो को सुनाता था, ओर बच्चो पर बहुत असर पडता हे, वैसे यहां जर्मन मे भी बच्चो की कहानियां बहुत हे, लेकिन अब परिवार सुकडते जा रहे हे इस लिये आज के बच्चे इन सुंदर कहानियो से यहां वंचित हे. लेकिन किताबो मे सभी कहानिया मोजूद हे
अंकुरण के समय से लेकर पौधे के देखभाल जरूरी है...वो आप कर रही हैं....उत्तम....
monika ji sach kah rahi hain aap.bachchon ke liye ve kahaniyan jo unke bade unhe sunate hain bahut mahtva rakhti hain isliye main aapki bat se poorntaya sahmat hon ki badon ko shiksha prad prernaprad kahaniyan bunni chahiyen.sarthak aalekh..aabhar.
कहानियां काम करती हैं.......एकदम सच और आजमाई हुई बात है.
बढ़िया आलेख...
haan ye kahaniyan bahut mahtva rakhti hain bachchon ke jeevan me.sarthak aalekh.badhiya prastuti..
बहुत ही शिक्षाप्रद पोस्ट डॉ० मोनिका जी बधाई |
बहुत ही शिक्षाप्रद पोस्ट डॉ० मोनिका जी बधाई |
कहानियाँ प्रेरणास्रोत होती हैं!
बचपन में कहानियों से प्रेरणा और सीख मिलती है, सोचने का दायरा और जिज्ञासा भी बढ़ती है ...बहुत ही अच्छी पोस्ट ।
bachpan me meri maa bhi muje roj kahaniya sunaati thi.kabhi kabhi to mai ab b jidd karti hu k maa kahani sunaao na.par ab hum bade ho gaye hai.kintu chhote bachho k manas patal pe ye kahaniya hamesha k liye ankit ho jaati hai. bilkul sahi kaha aapne hume usnhe sakaratmak kahiniya sunani chaiye.bahut achha laga pad k
stories shape well, young minds...
बिल्कुल सही तरीके से कहानियां काम करती हैं इसीलिये तो वयस्कों के पत्र-पत्रिकाओं से कम नहीं हुआ करती थी बच्चों की नंदन, चंदामामा व इस जैसी अन्य अनेक बाल कहानी संग्रह.
सच है जब बच्चों को कहानी सुनाने का अवसर आता है तब आपकी रचनात्मकता का परीक्षण होता है। क्या हम आधुनिक कहानियों को किसी को सुनाने की स्थिति में हैं? इस प्रश्न पर भी विचार करना चाहिए।
सच कहा कहानियां बच्चों के कोमल मन को बहुत प्रभावित करती है । कहानियो. का चुनाव बच्चों के उमर और रुचि के आघार पर ही होनी चाहिये । मैं दादी हूं इस लिये इस के अहमियत को जानती हूं
बिलकुल सही मोनिका जी ...
हाँ ,यदि कहानी सुनाने वाला पूरे मन से सुनाये - सुनने वाला ढंग से सुने और कहानी भी सरल-सहज प्रेरणाप्रद हो |
बिलकुल सही मोनिका जी ...
हाँ ,यदि कहानी सुनाने वाला पूरे मन से सुनाये - सुनने वाला ढंग से सुने और कहानी भी सरल-सहज प्रेरणाप्रद हो |
आपने सही कहा है डॉ मोनिका जी । बच्चे तो कहानी में खुद भी कुछ जोड़ने का काम कर लेते हैं । मेरे साढ़े चार के जुड़वा पौत्र कुछ दिन से हमारे पास रहने के लिए आ गए हैं । ये रात में कहानी ज़रूर सुनते हैं। आज आपकी कविता -(कहाँ मैं खेलूँ -अर्चना जी की आवाज़ में)उनको सुनाई तो बड़े मुग्ध हो गए । शब्द इतने सरल और सहज हैं कि सहज रूप में ग्राह्य है।
bilkul sahi bat aap kah rahi hai. ye shiksha prad bal kahaniya bachchon ke manonbhavo ko kafi had tak prabhavit karti hai. sunder sgeekh..... abhar
बिलकुल सही कहा है मोनिका जी आपने बच्चे इन कहानियों को बड़े ध्यान से सुनते हैं, तो असर तो जरूर छोडती होंगी ये उनके कोमल से मन पर ... सार्थक आलेख के लिए आभार...
yes agree with u
yes stories are important and help lot
श्रुति परम्परा से समाज में पीढी-दर-पीढी आगे बढती हैं। दादी-नानी की कहानियाँ बचपन से नौनिहालों में संस्कार डालने का काम करती थी और उन्हे जीवन मार्ग पर चलने की दिशा मिलती थी।
कहानियाँ नि:संदेह व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती हैं।
आभार
बच्चे जीवन की कहानी के पथ पर चलना शुरू करते है और ये कहानिया , उन्हें आलंबन देती है , यदि सुरुचिपूर्ण हो ! बहुत ही सुन्दर प्रयोग ...चैतन्य के ऊपर ! चैतन्य धन्य है , जो आप जैसी माँ मिली ! बहुत ही सुन्दर लेख
बच्चों का प्रिय बनना हो तो कहानी कहना जरूर आना चाहिए | इसके परिणाम भी बहुत सकारात्मक हो सकते है अगर कहाने एका चुनाव सही किया गया हो तो | क्यों की बाल मन पर कहानी की बाते हमेशा के लिए सेव रहती है |
बालमन कच्ची मिट्टी के समान होता है और उसे जैसे चाहे ढाला जा सकता है ये तो माता पिता की समझदारी पर निर्भर करता है।
वाकई कहानियां काम करती हैं.. हमने भी रची है कई कहानियां बच्चों के लिए... बच्चों की कंडिशनिंग में काम करती हैं ये..
कहानियां प्रेरक होनी चाहिए तभी लाभप्रद हैं.हमें तो बचपन में जो कहानियां अपने नानाजी ,मामाओं से सुनने को मिलीं वे रजा-रानी,चिरैया-चिरोंटा की थीं केवल वक्त काटने की.इसलिए मैंने यशवंत को तत्कालीन परिस्थितियों की कहानियाँ सुनाईं,जैसे-राजीव गांधी ने ज्ञानी जेल सिंह को अंगूठा दिखाया और ज्ञानी जी ने राजीव को घूँसा माराआदि-आदि.पुरातन की बजाए उस समय की राजनीति की कहानियां ही उसे बताईं थीं.
बढ़िया बात कही आपने। मैं भी बच्चों को खूब कहानियाँ सुनाता था। कुछ मन गढ़ंत, कुछ सुनी सुनाई और कुछ पढ़ी हुई। बच्चे थे कि रोज एक कहानी की मांग करते थे। मेरी कहानियाँ भी कभी खत्म नहीं होती थींं। बच्चे बड़े हो गये. पूछते हैं वो वाली कहानी...मैं कहता हूँ तुमको नोट करना चाहिए था न मुझे नहीं पता!
साहित्य का जीवन से गहरा नाता है।
व्यक्तित्व के निर्माण में निश्चित रूप से कहानियां काम करती हैं।
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कहानी का एक संतुलित अंत करने के विचार को बल मिलता है मानो उन्हें स्वयं अपनी राह बनाने की सोच और शक्ति मिल रही हो।
सचमुच काम करती हैं कहानियां. मनुष्य निर्माण हेतु इनका अत्यधिक महत्व है .सुन्दर,प्रभावी पोस्ट
मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्तर कहानियों में की गई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति बच्चों के मन मस्तिष्क में गहरी जगह बना लेती है। यही वजह है कि बच्चे कहानियां सुनते ही नहीं गुनते भी हैं ।
kitni sundar baate kah daali ,padhte huye hum bhi bachpan se jaa mile ,aap bahut badhiya likhti hai .man khush ho gaya .
मोनिका जी सही कहा आपने कहानियां बदलाव लाती हैं और बच्चों के बेहतर विकास में सहायक होती हैं। जीजाबाई ने भी शिवाजी का निमार्ण कहानियां और किस्से सुनाकर किया था। हमने भी अपने दादाजी और नानाजी-नानीजी से खूब किस्से सुने। लेकिन, पाश्चात्य की ओर भाग रहे आज के समाज में यह मुश्किल कार्य हो गया है। एकल परिवारों के चलन की वजह से बच्चों को बुजुर्गों का साया नसीब नहीं हो पा रहा है। माता-पिता भी उतना ध्यान नहीं दे पा रहे बेहतर लाइफ स्टाइल के लिए अधिक से अधिक धन कमाने की लालसा में। खैर, आप ये कर पा रही हैं यह जानकर बेहद खुशी हुई। आप मेरे ब्लॉग पर आए, इसके लिए धन्यवाद और हमेशा आपका स्वागत रहेगा।
बचपन की क्या कहे --वो सुनहरा पल जो बहुत जल्दी खत्म हो गया ---?
kahaniyon ke sansar ko jadui sansar aise hi nahi kahte...aur aapke chaitanya par to jadoo chal gaya...badhai
सहमत ,बचपन की कहानियां संस्कार की एक गहरी पृष्ठभूमि तैयार करती हैं!
छोटी छोटी कहानियां बच्चों के जीवन की कई बङी समस्याओं का संक्षिप्त हल हैं।...
-सही कहा आपने।
आपसे सहमत हूं...
सही कहा है..
मैं तो आज भी अपनी नानी से कहानियां सुन ही लेता हूँ...
मेरी आदत है किसी न किसी बात पे नानी को कुछ बोल देता हूँ और फिर वो शुरू हो जाती हैं किस्सा कहानी कहने लग जाती हैं :)
मोनिका जी ,आपसे सहमत हूं ।अपने बचपन में सुनी कहानियां अभी भी याद कर लेती हूं ।अपने बच्चों को भी ढेर सारी कहानियां सुनायी हैं -सुनी हुई भी और अपनी रची भी ......आभार !
बचपन की यादे इन्हीं कहानियों के माध्यम से ही तो जीवित रहतीं है:)
true..100% true...and yes ..you are best mom...
kahaniyan chatanyata ka dasrtavej hoti hain, na chahte huye bhi prabhav to padana hi hai . sunder prayog . abhar ji .
दादी/नानी के कहानी /क़िस्से बच्चों में नई स्फूर्ति और चेतना का संचार करते थे. अब तो माहौल ही गड़बड़ा गया है.आप बहुत अच्छे विषयों पर मेहनत से लिखती हैं,मोनिका जी.
dr.monika ji dher saara pyaar poore parivar ko.comment komal si rachanayen padane ke baad.thnx2u.
कहानियां निश्चय ही सोचने-समझने-परखने की शक्ति बढ़ाती हैं.
bilkul sahi kaha apne....sahamat hun apse....
बिलकुल सही कहा है मोनिका जी आपने बच्चे इन कहानियों को बड़े ध्यान से सुनते हैं, तो असर तो जरूर छोडती है...
आपने एकदम सच कहा है ..यह उनके मान पर गहरा असर करती है ... मेरे यहाँ ये सिलसिला पिचले ३ सालो से चल रहा है अब हालत ये है कि मुझे कहानिया याद नहीं आती चिन्मयी अपनी कोई कहानी बनके रोज बताती है .....
Title
Go Green Think Green
बहुत सही कहा आपने
बहुत सुंदर आलेख
एकदम सच । कहानियाँ तो हम भी बचपन में बडे चाव से सुनते थे । कहानी सुनाना भी एक कला है । हमारे एक भाई कहानी को इतना जीवंत कर देते थे कि हमें अपने आसपास का होश भूल जाता था । पंचतंत्र की कहानी में अंत में तात्पर्य भी होता था । जिससे सीख मिलती थी ।
बाल मन पर कहानी का प्रभाव और उसके मनोवैज्ञानिक कारणों पर ना जाते हुए आपसे सहमत हूँ . बचपन में दादी नानी से सुने किस्से (ज्यादातर पौराणिक ) अभी भी मन के किसी ना किसी कोने में छुपे हुए है . कहानी सुनेवाले बच्चे की सम्प्रेषण शक्ति में भी बदलाव आता है .
Bilkul asar karti hain ... bachon ka swabhaav unke sochne samajhne ke dhang ko kahaaniyaan jaroor prabhaavit karti hain ....
bahut...sahi kaha aapne..ek achha madhyam hai...seekhne ka aur sikhane ka KAHANIYAN....
मोनिका जी,
सहमत हूँ आपसे .....कहानियों या लोकोत्तियों के माध्यम से बात आसानी से समझी व समझाई जा सकती है.......पंचतंत्र व लोकोपदेश की कहानियां इसका बहुत अच्छा उदहारण हैं |
नि:संदेह कहानियाँ व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होती हैं। सुन्दर सार्थक पोस्ट लिखी है आपने..... आभार
जी हाँ, काम करती हैं कहानियां लेकिन कहानियां सुननेवाले बहुत कम हो गए हैं.
sach kaha aapne kahaniyan bachon ke man par gahra prabhaav chhodti hain aur unke gyan ke sath aatmvishwas bhi badhati hain. aur aap jaise guni maayen hon to bacche ki kamjoriyon ko kisse kahaniyon ke dwara khatam kar sakti hain. bacche jab chhote the to main bhi unhe roz kahani sunati thi ab to vo hi mujhe nit nayi kahaniyan sunate hain. ha.ha.ha.....new generation ka kuchh asar to hai lekin kahaniyon ka mehatv apni jagah hai aur rahega. yahi hai hamara bharat mahan aur uski paramparayen aur sanskar.
बच्चों को कहानी सुनाने से उनकी उत्सुकता बढती है उस चरित्र के प्रति और हम जैसी कहानी सुनायेंगे बच्चा उसी तरह के गुण अपनाने की कोशिश करता है ....आपने एक सार्थक लेख के माध्यम से कहानियों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला है ...आपका आभार
बिलकुल सही बात कही है आपका लेख पढ़ मैं अतीत में खो गया तो अहेसास हुआ कितनी छोटी सी बात है पर सच है|
बिल्कुल सही निष्कर्ष है आपका।
कहानियां बच्चों में सुसंस्कार उत्पन्न करती हैं, उनकी भाषा को समृद्ध करती हैं, उनकी रचनात्मकता को नई दिशा देती हैं।
इस सार्थक आलेख के लिए आभार।
कहानियां मन मस्तिष्क में अच्छा असर करती है .. सार्थक पोस्अ के लिए आपका आभार !!
सही कहा आपने
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
मिलिए हमारी गली के गधे से
potali baba ki dekh kar bade hue hain hum...gita press ki chokhi kahaniyan yaad hain...
Mpnica ji,
Apne bahut prasangik aur sarthak mudda uthaya hai apne is lekh men.sach men bachapan men suni kahaniyan bal man ko bahut behatareen dhang se sanvarati hain..unaki bahut sari samasyaon ka samadhan bhi nikalti hain.
mujhe to lagta hai ki bachapan men dadi nani ya anya badon se suni kahaniyon se jo sanskar,jo shikshha bachchon ko milti hai vah unhen jivan paryant rah dikhane ka kam karti hai.
Poonam
Mpnica ji,
Apne bahut prasangik aur sarthak mudda uthaya hai apne is lekh men.sach men bachapan men suni kahaniyan bal man ko bahut behatareen dhang se sanvarati hain..unaki bahut sari samasyaon ka samadhan bhi nikalti hain.
mujhe to lagta hai ki bachapan men dadi nani ya anya badon se suni kahaniyon se jo sanskar,jo shikshha bachchon ko milti hai vah unhen jivan paryant rah dikhane ka kam karti hai.
Poonam
सार्थक लेख ...
अच्छे और गंभीर विषय पर ध्यान आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।
सच कहा कहानियां बच्चों के कोमल मन को बहुत प्रभावित करती है. व्यक्तित्व के निर्माण में निश्चित रूप से कहानियां काम करती हैं. मुझे याद है अपनी दादी से रोज एक कहानी सुनकर सोना और उन कहानियों कि छाप आज भी जहन में है. सुंदर प्रस्तुति.
आपने सुन्दर लेख प्रस्तुत किया है..... इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
बच्चों को आत्मविश्वास वढाने और संघर्षो से जूझने वाली कहानियां ही सुनाना चाहिये
aapne sach kaha , baccho ko kahaniyo ke maadyam se kayi baate smajhayi ja saktihia ajo ki general format me nahi samjhayi sakti ..
bahut accha likha aapne
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
Monikaji shat-pratishat sahi kaha apne. kahani kaise aur kisko sunai ja rahi hai yeh bhi umr aur bachhe ke manovigyaan par nirbhar karta hai...
Abhar!
बिल्कुल सही कहा है आपने .. बेहतरीन प्रस्तुति ।
मोनिका जी, प्रणाम!
कहानिया सचमुच काम करतीं है,
और वो भी दादी नानी या माँ के मुख से हो तो क्या कहने...
ऐसे में बाल मन सहज ही इन पर विश्वास कर लेता है ...और ये व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण हो जातीं है....
सुन्दर लेख के लिए धन्यवाद |
कहानियां काम न करतीं,तो पंचतंत्र की इतनी चर्चा न होती। बच्चे कहानी सुनना चाहते हैं- सीधे हमारे मुंह से, न कि अखबार या कहीं और से पढ़कर मगर हमारी अपनी निर्जीविता के कारण बच्चे कार्टून चैनल्स देखने को विवश हो जाते हैं।
You are absolutly right. Stories really work.
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
हकीक़त बयां करते ये अनमोल शब्द
अक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
पूरी तरह सहमत हूँ। सार्थक आलेख। शुभकामनायें।
बिल्कुल सहमत हूं। लेकिन देख रहा हूं कि असर डालने वाली कहानियां धीरे धीरे कम होती जा रही है। गीता प्रेस में कुछ कहानियां प्रकाशित भी होती हैं तो वह वहीं रह जाती हैं।
बहुत सही कहा है आपने..कहानियाँ बच्चों को बहुत कुछ सिखा सकती हैं. उनको कहानी सुनाना भी एक बहुत सुखद अनुभव होता है.बहुत सार्थक पोस्ट ..आभार
sarthak post......ye jimmedaee maine bhee bakhoobee nibhaee hai.......aur aaj betiya......
ha bete ko thoda bada hote hee padne kee aadat ke liye bhee encourage keejiyega........
sarthak lekhan ke liye aabhar .
मोनिका जी,
सौ प्रतिशत सहमत हैं आपसे.....
बालमन पर कहानियों के होने वाले असर और उसके दीर्घगामी प्रभावों/महत्ता को हम पिछले दिनों आयी हुई फिल्म चन्द्रमुखी(तमिल) और बाद में हिन्दी बनी जिसमें मुख्य भूमिका अक्षय कुमार ने निभायी थी, और नायिका बिद्या बालन किस तरह अपनी दादी से सुनी हुई कहानियों को जीने लगती है और मनोवैज्ञानिक संत्रास से ग्रस्त हो जाती है।
आपने बिल्कुल ठीक कहा है कि बालमन पर हमें सकारात्मक प्रभाव पैदा करने वाली कहानियाँ सुनानी/दोहरानी चाहिये।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत ठीक लिखा है मुझे तो कहानिया सुनने व सुनाने का बहुत शोंक है ,मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया.
आपकी भावभरी प्रस्तुति को पढ़ा और मंत्रमुग्ध हुआ | आपको ढेर सारी शुभकामना और साथ ही धन्यवाद |
my blog is missing you .....
आपका अनुभव और विवेचन बिल्कुल सही है। कहानी तो है ही, ज़िम्मेदारी का अहसास और वात्सल्य भी महत्वपूर्ण है।
और बच्चों के लिए कहानियां बनाने में खुद भी तो कितना मज़ा आता है।
यहां हैरी पॉटर का भी ख्याल आया।
आज आपके ब्लॉग पर भ्रमण किया तो अच्छा लगा कि कितना मार्मिक और जीवन्त है आपकी विचार धारा. और लेखन कार्य पर तो पूरा ही अधिकार है " क्या कहूँ ....." कविता सुंदर लगी और संस्कार भरने के लिए कहानी का सहारा! सुंदरतम .समय कि कमी के कारण कभी कभी भ्रमण व् लेखन भी कम ही हो पाता है इसलिए नियमित उपस्थिति देनी अपरिहार्य सी लगती है .
शब्दशः सहमत हूँ आपसे...
कहानियों का अपने तथा अपने बच्चे के व्यक्तित्व विकास में मैं अपूर्व योगदान मानती हूँ...
Aapki baaton se poorn sahmati.
............
ब्लॉdग समीक्षा की 12वीं कड़ी।
अंधविश्वास के नाम पर महिलाओं का अपमान!
Namskar
Plz give ur email id
www.kranti4people.com
www.kranti4people@gmail.com
धन्यवाद… मोनिका जी आप मेरे ब्लांग में आई ,मेरा उत्साह बढा़या मुझे खुशी हुई.. धन्यवाद…
Well.....I also agree with you. Congrats on a very meaningful post.
सहमत हूँ, सही बात कही है आपने. सार्थक विषय पर उम्दा लेखन के लिए बधाई.
monika ji aapne sahi kaha hai. bachpa me suni gai kahaniyan bishchot hi vyaktitv nirman men sahayak hoti hain.
सच कहा है,आपने....कहानियाँ, सामने एक नया संसार खोल देती हैं...और व्यक्तित्व निर्माण में बहुत मदद करती हैं. कहानियों के माध्यम से ही सारी सीख दी जा सकती है.
आज कल ऐसा युग चल रहा है जिसमें ज़्यादातर अभिवावक अपने बच्चों से ठीक से बात करने के लिए भी समय नही निकाल पाते है.. कहानियों की कौन कहे..कंप्यूटर गेम और टी. वी. ने बहुत कुछ बदल दिया..
मोनिका जी आप ने बिल्कुल सही बात कही है ..कहानियों से संस्कार मिलता है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है..आप इस परंपरा पर अमल करती है..यह बहुत ही बढ़िया बात है...काश हमारे और भी लोग अपने बच्चों के साथ कहानियों के लिए समय निकाल पाते तो आने वाली पीढ़ी के संस्कार के बारे में ज़्यादा चिंता नही करनी पड़े..
बढ़िया प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार..धन्यवाद
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
सही कहा ..बच्चों के कोमल मन पे इन कह्हनियों का बहुत प्रभाव पड़ता है... और अच्छी बात यह की आप चैतन्य की जरूरत के अनुसार कहानी बुन सकती है... शुभकामनायें .. चैतन्य और परिवार को..
बेशक, कहानियाँ जीवन निर्माण करनें सहायक है।
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