किसी शादी या सांस्कृतिक समारोह में गोली चलना और किसी की जान जाना , ऐसी खबरें है जो आये दिन अखबारों की सुर्खियां बनती है। ऐसे समाचार जब भी पढने सुनने को मिलते हैं ना केवल अफसोस होता है बल्कि मन गुस्से से भर जाता है। आखिर हम कौन से जमाने में जी रहे हैं और किस सोच के साथ जी रहे हैं ? अगर खुशियां मनानी है तो मनाइए ना जरूर मनाइए, लेकिन किसी की जान की कीमत पर नहीं । यह कौनसा तरीका है जश्र मनाने का जो किसी समारोह में तो रंग में भंग का काम करता ही है किसी के जीवन को भी हमेशा के लिए दुख की सौगात थमा देता है।
कितना अफसोस जनक है कि गांव हो या शहर हम अपनी संस्कृति को छोङ शादी जैसे सांस्कृतिक समारोहों में ऐसी घातक और विद्रूप चीजों को जगह दे रहे हैं। हैरानी की बात है भी कि हम अपने रीति रिवाजों और आपसी मेल कराने वाले रंग ढंग को छोङ ऐसी चीजों को समारोहों का हिस्सा बना रहे हैं। शादियों में होने वाले हमारे नेगचार और रस्म रिवाज ही इन कार्यक्रमों की शोभा बढाने के काफी हैं तो फिर इस जानलेवा धूम-धङाके की क्या आवश्यकता है?
गोली क्यों चली............ ? किसने चलाई..........? कैसे चली...........? और किसकी जान गई...........? इन सब पहले मेरे मन में बस एक ही सवाल आता है कि शादी जैसे सामाजिक-पारिवारिक समारोह में किसी के पास बंदूक होने की आवश्यकता ही क्या है?
सवाल यह भी नहीं है कि इन दुर्घटनाओं में दूल्हे की जान गई या किसी मजदूर की। किसी रिश्तेदार की जिंदगी जाए या मेहमान की। प्रश्र तो यह है कि दो लोगों को सुखद जीवन की शुभकामना देने के लिए जुटे लोगों में से कोई भी अपना जीवन क्यों खो दे......? पर दुर्भाग्यपूर्ण ही है आए दिन ऐसी घटनाएं घटती हैं जो हमारी सामाजिक जवाबदेही पर भी सवालिया निशान लगाती हैं।
गांवों में आमतौर पर ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं। वजह साफ है कि वहां दो रिश्तेदारों का बंदूक तानकर बारात में चलना हैसियत के प्रर्दशन का तरीका है। अफसोस की बात है कियही ऐंठ- अकङ अब तक ना जाने कितने लोगों की जान ले चुकी है।
मन में यह बात भी आती हैं कि हमारे गांवों में जहां बात बात में पंचायतें बैठ जाती हैं वहां ऐसे मुद्दों के बारे में बात क्यों नहीं होती ? क्यों नहीं ऐसे लोगों को सजा दी जाती जो दिखावे और शराब के नशे में चूर हो ऐसे समारोहों में गोलियां चलाते हैं और ऐसी दुर्घटनाओं को अंजाम देते हैं।
यह ज्यादा विचारणीय इसलिए भी है क्योंकि ये सिर्फ दुर्घटनायें नहीं हैं। समाज में मौजूद मानसिकता और अहम की भी बानगी है। यह भी एक तरह का शक्ति प्रर्दशन है जो मुझे किसी सामंती परंपरा से कम नहीं लगता।
102 comments:
ऐसी ही कुरीतियों के प्रति समाज में जागरूकता लाने की आवश्यकता है, शायद कुछ जानें बच सकें। धन्यवाद!
aapne sahi kaha
bahut hi vicharniya vishay
हथियार रखना और चलाना तो अहं का चरम हैं। बड़े बड़े बोलों के कारतूस तो आपने अक्सर ही आस पास ही अक्सर चलते और काम करते देखे होंगे। अगर बहुत ही आरंभिक अवस्था में अहं पर काबू पा लिया जाये, शक्ति की अभिलाषा के दुष्परिणाम ज्ञात करा दिये जायें, तो ... हथियारों के प्रदर्शन तक बात ही ना पहुंचे।
बिल्कुल सही कहा है आपने ...सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति ।
आपका हर शब्द विचारणीय है और अमल किये जाने की मांग करता है.मैं आपके विचारों का पूर्ण समर्थन करता हूँ.
कुछ दिन पहले मेरे घर के नीचे किसी बारात की गाडियां खडी थी। मैं ऊपर से देख रहा था तीन लडके जिनके पास तीन बन्दूके थी। उनकी दो बन्दूकों ने काम करना बन्द कर दिया। बेचारे पूरे तीन घंटे तक कार के इंजन से मोबिल ऑयल निकालकर बन्दूकें ठीक करने की कोशिश करते रहे।
इतनी देर में सारी बारात नाच-गा कर खा-पी कर वापिस जाने लगी थी।
कोई उनके दिल से भी पूछे कि उनके रंग में भी तो भंग पड गया :)
प्रणाम
बिलकुल सही बात उठाई है मोनिका जी ....
सोचने की बात है इस बेकार के ताम-झाम में लाखों की रकम यूँ ही जाया कर भी आज के युवा दो दिन में ही कटघरे में खड़े हो जाते हैं तलाक के लिए तो क्यों न ये रकम माता पिता लड़की के नाम कर दें ताकि उसके भविष्य में काम आये ....
बिल्कल सही मुद्दा उठाया है आपने.जहाँ तक मुझे पता है कानूनन खुले आम ऐसी गतिविधियों पर रोक है पर सिर्फ कागजों में ही.
इस प्रकार के शक्ति प्रदर्शन समाजहित में नहीं है.
सादर
आपकी बात शत प्रतिशत सही है...शादी जैसे मन के रिश्तों वाले आयोजन पर बन्दूक का क्या काम...इसे बंद होना चाहिए..
नीरज
आपने जिस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया है वो बहुत ही प्रासंगिक है | इसका ज्यादा चलन यूंपी बिहार जैसे प्रांत में देखने में आया है | राजस्थान में भी कभी कभी इस प्रकार की घटनाये होती है | ये प्रथा आज से नहीं पुराने समय में भी थी | तब केवल दिखावा ही नहीं बल्की उसका उपयोग होता था |बारात को चोर डाकुओ के द्वारा लुटे जाने का भय रहता था इस लिए हथियार साथ रखने की परम्परा शुरू हुई | एक कारण ये भी था कि पहले विवाह एक रस्म ना होकर प्रतियोगिता भी हो जाती थी जिसके लिए कभी कभी युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो जाते थे |बन्दूक साथ रखने का एक कारण किसी जमाने में ये भी था कि बरात जब गाँव में प्रवेश करती तब बन्दुक चलाकर उसके आगमन की सूचना दूर दूर तक विशेषकर दुल्हन के घरवालो तक पहुच जाती थी |लेकिन आज ये सब कारण मौजूद नहीं है ओर केवल दिखावा भर रह गया है इस पकार की मानसिकता केवल पिछड़े पन की निसानी है |
revolver/bandookon ka kisi bhi shaadi vivah ke jalson me kya kaam.
Keval vikrat maansikta ka parichayak hai yeh.
Aapka mere blog 'mansa vacha karmna' par aane ke liye shukriya.
बिलकुल सही बात उठाई है मोनिका जी
आप बिल्कुल सही कह रही है। आज विभिन्न समाजों ने कुछ प्रतिबंध भी लगाए हैं। जैसे सड़क पर नाचना, समय पर बारात ना ले जाना आदि आदि। लेकिन अभी भी यह सुधार केवल बूंदभर हैं, बहुत काम शेष है। अक्सर यही होता है कि किसी भी विवाह समारोह में जाकर आने के बाद प्रसन्नता की स्थान पर मन में कहीं न कहीं विक्षोभ जरूर होता है।
वजह साफ है कि वहां दो रिश्तेदारों का बंदूक तानकर बारात में चलना हैसियत के प्रर्दशन का तरीका है
mere na karane ke baad bhi..mere chhote bhayi ke barat me banduke gayi thi...lekin ab aisa karana thik nahi lag raha hai...mai apane bete ke shadi me in sab se parahej karunga..aap ke bichar se puri tarah sahamat hun...bahut-bahut badhai is lekh ke liye..
नशे में गन को हाथ लगाना नहीं चाहिए।
यह दोस्त-दुश्मन,अमीर-गरीब किसी को नहीं पहचानती।
बंद होना चाहिए यह वैभव प्रदर्शन
यह प्रचलन गांवों में भी अब काफी कम हो गया है। आखिर बंदूक का बोलबाला कब तक चलता।
गंभीर मुददा उठाया आपने। इसे कुरीति भी कह सकते हैं और अपनी शान का प्रदर्शन करने का तरीका।
इस पर चिंतन होना चाहिए और बंद होनी चाहिए यह परंपरा।
"यह भी एक तरह का शक्ति प्रर्दशन है जो मुझे किसी सामंती परंपरा से कम नहीं लगता"
बिलकुल सही - लगाम लगाना आवश्यक है
आपने जिस मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया है वो बहुत ही प्रासंगिक है |सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति ।
धन्यवाद!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
पता नहीं कब बंद होंगे ये व्यर्थ के दिखावे।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
किस-किस कुरीतियों की बात किया जाये ..जहाँ छोटे जगहों पर इस तरह की वारदातें होती रहती हैं तो तथाकथित अभिजात्य वर्ग पानी की तरह पैसा बहाकर अपनी शक्ति प्रदर्शन करते हैं .संवेनशील मुद्दा ..सुन्दर विमर्श .
डॉ० मोनिका जी आपने बहुत संजीदगी से एक गंभीर विषय कि ओर ध्यान आकृष्ट किया है आपको बधाई |
दो कारणों से लोग ऐसे आडम्बर करते है।
एक तो अहंकार का प्रदर्शन करना। और दूसरा नित नई से नई चीज/बात अपने समारोहों में करना।
बडी दुखद है ऐसी घटनाएं। इंसान के साथ अहंकार का दृढ गठबंधन है।
aj admi matr dikhave ke liye bekar ke tamjham me apvyay karta hai .
vicharniy lekh.
ये तो गुरुर ही है, गुरुर तो रावण का भी नहीं रहा ! ऐसी कुरूतियां बंद होनी चाहिए. आपके विचार प्रशंशनीय हैं...आभार.
नशा ,गोली चलाना शान दिखने के न जाने कैसे तरीके हैं ये .निश्चित ही ये बंद होना चाहिए.
खूबसूरत शीर्षक व सुंदर अभिव्यक्ति !
बहुत सही कहा..ऐसे दिखावे पर रोक लगाना आवश्यक है..
main apki baat se poori tarah sehmat hu aur is par pratibandh bhi lagna chahiye. par mudda ye nahi hai ki pratibandh lagna chahiye muddha ye hai ki kya pratibandh k baad bhi ye ruk payega? shyad tab tak nahi jab tak har ghar ka mukhya sadasya is k virudh kharha nahi hota. kyuki har cheez ki shuruaat ghar se hi hoti hai. aur agar hum ise rokna chahte hian to pehle hame apne ghar se shuruaat karni hogi. kyuki koi bhi kuriti tab tak nahi roki ja sakti jab tak hum khud na chahe.
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने,मेरे हिसाब से बारात वगैरह में फायरिंग पर तो बैन लगा देना चाहिए|
समाज को इस पर सोचने की जरूरत है
sundar lekh... maine socha ise charchamanch me rakhti hun kintu vandnaa ji ke comment se pataa chala ki rachnaa purv me charchamanch par thee... net theek na hone se mai charchamanch kaa vichran nahi kar paayi... aapki is rachnaa ke liye aapko badhai...
विचारोत्तेजक पोस्ट। आपसे सहमत।
सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति ।ऐसी ही कुरीतियों के प्रति समाज में जागरूकता लाने की आवश्यकता है,धन्यवाद!
सार्थक एवं विचारनीय पोस्ट..
आभार !!
very important topic ,needs statuary bindings...
very important topic ,needs statuary bindings...
बहुत सही कहा आप ने, यह कुरीतियां गांव देहात या छोटे शहरो मे ज्यादा हे, पता नही लोगो को क्या मिलता हे,बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जान की कीमत तो है ही....जीने का कारण बन्ना चाहिए ना की किसी की मृत्यु का....
आद.मोनिका जी,
आपने सही लिखा है ! यह केवल शक्ति प्रदर्शन ही है और पूरी तरह सामंती परंपरा का ही द्वोतक है ,नहीं तो विवाह की ख़ुशी के माहौल में भला बन्दूक का क्या काम!
विचारणीय लेख के लिए आभार !
samajik samaroh me aise pardarshan par rok lagni hi chahiye .bahut sarthak aalekh .badhai.
जब बारात के साथ दुनाली लेकर चलना अपनी शान समझा जाता हो और शराब आवश्यक तो ऐसी घटनाएँ तो आम होनी ही हैं । कौन, कैसे और किस-किसको समझाए ?
इस पर चिंतन होना चाहिए और बंद होनी चाहिए यह परंपरा। समाज को जागरूक होने की आवयश्कता है.. गंभीर विषय पर ध्यान आकर्षित करती पोस्ट .आपके विचार प्रशंसनीय हैं...आभार.
Really.such nonsense has become status symbol and fashion.Many have lost their lives and many more will.Stern action should be taken in this regards but political influence and excess of money power willnotmake such action possible.Any way ,good question raised.
Thanks for coming to my blog jeevansandarbh and making a positive comment.
Pl visit it again and respond.Regards,
dr.bhoopendra
बन्दुक हैसियत और ताकत दोनों की निशानी होती है और जो दिखावे से और बढ़ती है केवल शादी विवाह ही नहीं जिनके पास ये ताकत होती है वो हर मौके पर इसक प्रदर्शन करते है |
बहुत सार्थक प्रस्तुति .विचारणीय पोस्ट आभार ...
बिलकुल सही कहा आपने. गाँव का रहनेवाला हूँ. इस तरह के भौंडे प्रदर्शन देख चुका हूँ. जागरूकता की जरूरत है .ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे.
उम्दा आलेख....
सही कहा: यह भी एक तरह का शक्ति प्रर्दशन है...शायद इन प्रथाओं के पीछे यही सोच हो.
बहुधा मना करना पड़ता है कि गोली न चलायें।
सहमत हूँ। विचारणीय पोस्ट के लिये धन्यवाद।
बिल्कुल सही कहा है आपने ...सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति ।
विचारणीय लेख के लिए आभार !
यह सब पढ़कर आश्चर्य होता है कि हम किस सोच के साथ जी रहे हैं। बहुत अच्छा लिखा है आपने। कम से कम इस ब्लाग के पाठकों तक तो यह संदेश आपने पहुँचाया ही। साधुवाद।
बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने .
शादियों में अकड़ दिखाने के बहुत से और मौके मिलते है.
हथियारों से परहेज़ ही होना चाहिए.
इस समस्या की जडें राजा महाराजाओं की शादी से जुडी हैं.
और हम तो नक़ल करने में माहिर हैं.
सलाम.
व्यस्तता की वजह से आप के ब्लॉग पर देरी से पहुंचा.
मुआफी चाहूंगा.
मोनिका जी,
विचारों को प्रभावित करती है आपकी लेखनी, प्रश्न जो आपने उठाये हैं वो कहीं दूर जाकर हमारी सामंती मानसिकता की ओर इंगित करते हैं कि हम आज भी उनसे उबरे नही है :-
(1) दिनभर पैंट-शर्ट पहनने वाले हम क्यों शादी-ब्याह में साफा/पगड़ी पहनते हैं?
(2) कुर्ता-पायजामा, शेरवानी, दुप्पट्टा आदि न हो तो जैसे ब्याह ही न हो?
(3) तोपों की सलामी, बंदूकों की सलामी, हाथी की सवारी, बग्घी की सवारी, घोडे पर सवार ......की बारात आदि?
(4) बाराते के पहले बाना आदि।
कहीं ऐसा नही लगता कि यह अब खुशियों को दिखावे में बदलकर रख देते है और वास्तविक खुशियाँ इन लोकाचारों के आडम्बर में कहीं विलुप्त हो जाती हैं।
साधुवाद,
मुकेश कुमार तिवारी
कवितायन < /a>
बहुत अलग मुद्दे की ओर ध्यान खींचा है आपने...
झूठी हैसियत दिखाना ही इसके पीछे का एकमात्र उद्देश्य है.... हालांकि अब यह धीरे-धीरे कम हो रहा है...
जायज चिंता |
बहुत बढ़िया रचना!
लौहांगना ब्लॉगर का राग-विलाप
.
मोनिका जी, जिनका विवाह ही अस्त्र-शस्त्र आधारित हो ... वे तो सर्वथा त्याज्य हो जाने चाहिए फिर?
— सीता-स्वयंवर में सभी उम्मीदवार हथियारों से लेस होकर शामिल हुए थे.
— द्रोपदी-स्वयंवर में भी अर्जुन ने हथियार के प्रयोग से ही कम्पटीशन जीता था.
— रुक्मणी-अपहरण और संयोगिता-अपहरण में भी योद्धाओं ने हथियार धारण करके ही भावी-अनिष्ट के कल्पित भय से सेल्फ-डिफेन्स किया था.
...... लगता है विवाह और स्वयंवर जैसे कार्यक्रमों में शत्रु-पक्ष बलवती हो उठता है उनको दबाने के लिये ही शोर-शराबा अधिक किया जाता है,
शादी-ब्याह में आतिशबाजी और फायरिंग से उन्हें शक्ति और बहुमत का एहसास कराना ही उद्देश्य होता हो!
.
आपने सही लिखा है ! यह केवल शक्ति प्रदर्शन ही है और पूरी तरह सामंती परंपरा का ही द्वोतक है
समाज में जागरूकता लाने की आवश्यकता है, शायद
सचमुच ऐसी जाहिली पर बेहद गुस्सा आता है -अभी बनारस में सप्ताह भर पहले ही लडकी पक्ष की एक महिला की मंडप में गोली लगने से मौत हो गयी और दूसरी जीवन मौत के बीच संघर्ष कर रही है -बनारस के एक पूर्व पार्षद की बन्दूक से गोली चली थी -अब ये तो हमारे जनप्रतिनिधि हैं !
मोनिका जी, बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर टिपण्णी दे रहा हूँ ! आज आपका लेख बहुत कुछ मेरे मन की बात कह रहा है ! और एक बात कहूंगा जो मैंने बहुत करीब से अनुभव की है कि ऐसी घटनाये मुख्यत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बेल्ट में होती है जैसे गाजिबाद से लेकर मेरठ मुजफ्फरनगर बदौत , बागपत अलीगढ एटा इत्यादि ! मैं यह नहीं कहता कि वहाँ अच्छे लोग नहीं है, बहुत है अच्छे लोग भी मगर शायद आपको यह सुनना अच्छा न लेगे कि सारे चोर, उच्चके, बदमाश, उठाईगीर, फिरोतीवाले, मिलावट खोर, कमीने लोग भी इसी बेल्ट में अधिकाशत रहते है ! और शादी बयाह पर यही लोग अपने अविध हतियारों के बल पर अपनी शानोशौकत दिखाने की कोशिश करते है !
टिपण्णी में मन की भड़ास निकालने के लिए क्षमा चाहता हूँ !
Vakt ka takaza hai ki Adhunik samaz me jine ki baate hum khub karate hai lakin... Asi baaton par har baar Kute ki punch kabhi sidhi nahi ho sakati wali kahawat ko charitartha karate hai nazar aate hai. Vichar karane yogay post aap ka dhanayawad.
हर शब्द विचारणीय है , सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति
sahi kaha aapne mai bhi apse sahamat hun....
कुरीतियाँ समाज के लिए कोढ़ , लेकिन कुछ स्वनामधन्य इसे समर्थता का प्रतीक मानते है . विचारपूर्ण आलेख .
aisi kureetiyon ke khilaf kanoon kaun bnayega ? vo jo khud sngeeno ke saye me chlte hai ? kureetiya to sirf jn jagriti se hi khtm ho skti hai our koi doosra ilaj nhi hai .
सार्थक पोस्ट ! यक्ष प्रश्न !! मेरी पोस्ट फा भी आएं !
बहुत मुश्किल है इस पूंछ का सीधा होना.
इस तरह के शक्ति-प्रदर्शन की न तो आवश्यकता है समाज में, न ही ये उचित लगता है किसी भी कोण से । इसमें अपरिपक्वता , बर्बरता , पाशविकता और मानव-मूल्यों का उपहास नज़र आता है । सुसंस्कृत विश्व की कल्पना में बंदूक का वैसे भी कोई स्थान शायद नहीं है ! विचारोत्तेजक पोस्ट ! धन्यवाद !
दिखावे की दुनिया.. अफसोस..
आप बिल्कुल सही कह रही हैं ..अम़तसर में हमारे पड़ोसी की बच्ची की बाजू भी इस सिरफिरेपन की वजह से उड़ गई थी ....और जहां तक कोई कार्यवाही होने की बात है ...अकसर इस तरह के अवसरों पर उपस्थित करने वाले सभी लोग कुछ इस कद्र सामाजिक ताने बाने में बुने होते हैं कि किसी ऐसे उपद्रवी के विरूद्ध कुछ नहीं होता और ये बेलाम घूमते हैं .. मुझे भी यह सब देख कर बहुत चिढ़ होती है।
मोनिका जी आप बिल्कुल सही बात कह रही है । दिखावे के कारण लोग ऐसा कृत्य करते हैँ । इस कृत्य की जितनी निंदा की जाये उतनी कम है । आभार मोनिका जी ।
" सितारा कहूँ क्यूँ चाँद है तू मेरा.........गजल "
आज हमें समाज में फैले अनेकों कुरीतिओं को दूर करना है.
आज के अनेकों बुद्धजीवी वर्ग भी जब इन कुरीतिओं का परोक्ष रूप से समर्थन करते हैं
तो दिल में बहुत तकलीफ सी होती है.
आवश्यकता है कठोर कदम उठाने की .....
हार्दिक शुभकामनाएं!
monika ji
bahut hi vicharniy avam kabile tarrif hai aapki prastuti bahut hi bdhiya -v- khoobsurati ke saath in aaye dino samaroho me ya saskritik karyo me apni shaan samajh kar banduk lekar
chalne walo ke baare me likha hai aapne pata nahi log ye kyon nahi soch pate ki isse unki shhan nahi badhti ha han!logo ki jaane jaroor chali jaati hain.rang me bhang aise hi mahoul ho jaate hain.
bahut hi sahi chiran prastut kiya hai aapne.
itni badhiya post padh kar hi logo ki aankhe khul jaaye .
kash!aisa ho paaye----
poonam
हर शब्द विचारणीय है , सुन्दर एवं विचारात्मक प्रस्तुति| धन्यवाद|
इस तरह बन्दुक रखना शादियों में इनका इस्तेमाल करना सिर्फ एक झूठी शान और खुद को ओरों से अलग अंदाज़ में दिखाने भर का प्रयास मात्र है और बाकि कुछ नहीं पर एसा करने से कुछ गलत भी हो सकता इस बात से बेखबर रहते हैं बस यूँ समझ लो की अपने मद में खोये रहते हैं जो होगा तब देख लेंगे |
विचारणीय रचना |
विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर बंदूकों का प्रदर्शन सामंती व्यवस्था के अवशेष हैं। इस घातक परम्परा पर कानूनी रूप से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
मोनिका जी सही विषय का आपने चयन किया आपने अक्सर हम इसे एक घटना मानकर भूल जाते है परन्तु यह एक चिंतनीय विषय है सार्थक लेख के लिए बधाई ..........
विचारणीय पोस्ट ....शुभकामनायें एवं साधुवाद !
aadmi pisaach ban raha hai tabhi aesi harkate kah raha hai ,bahut afsos ki baat hai .magar roke kaun yahan .ant jaroori hai aese ghatnao ka .
विचारणीय प्रस्तुति,शादी ब्याह में बन्दुक का क्या काम ????
मैंने तो खुद देखा है....शादी में गोली चलते..और एक दस साल के लड़के के बस बाल को छु के गोली निकली...बच गया वो,
बहुत गुस्सा आया था मुझे उस समय... :(
आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. ये दिखावे का ज़माना कब ख़तम होगा.आपकी पोस्ट देर से देख पा रहा हूँ ,माफ़ कीजियेगा. आप को पढ़ना अच्छा लगता है.
मोनिका जी,
नमस्ते!
आपने एक अच्छी पहल की है. दर-असल इस मुद्दे को कोई अहमियत दी ही नहीं जाती. शत-प्रतिशत सहमत. अगर परंपरा है तो फूहड़ है, बंद होनी चाहिए.
आशीष
sochneey vishay, badhiya prastuti. aabhaar.
बिलकुल सही बात उठाई है मोनिका जी यह हैसियत के प्रर्दशन का तरीका है
बहुत अच्छा विषय उठाया है आपने मोनिका जी .... ऐसी न जाने कितनी कुरीतियाँ हैं हमारे समाज में ... कुछ सदियों से चलतीं आ रही हैं .. तो कुछ को लगा ने अपनी स्टेटस सिम्बल की तरह बना लिया है ...
samaj ko esi kuritiyon se bachane ke liye.
Bhaut hi sunder lekh
Dhanywaad
यह सिर्फ और सिर्फ शान बघारने के लिए की जाती है...और लोग प्रभावित भी हो जाते हैं...दुर्घटना की बात जल्दी ही भूल जाते हैं.
इस पर कड़ी रोक लगनी चाहिए
आदरणीय मोनिका जी,
नमस्कार
बिल्कुल सही कहा है आपने
खोखलापन अब सिर्फ दिखावा नहीं,वह हमारे जीवन का अंग है।
धन्यवाद.आप सब को भी शिवरात्रि की मंगल कामनाएं.
प्रासंगिक मुद्दा है बहुत सारी पुरानी प्रथाओ को ,मान्यताओ को प्रन्पंथी कहकर छोड़ते जा रहे है किन्तु जिन्हें त्यागना चाहिए उन्हें और विस्तार देते जा रहे है ?
जरुरत है उन लोगो तक ये बात पहुंचे |
jo kamzor hote hain shakti pradarshan unhe hi karne ki zaroorat hoti hai..hamare desh me kuritiyon ki bharmar hai...vicharon ki hi nahin karm ki bhi kalushta hai..hamara kam alakh jagate rahna hai...aur khud ko anushashit bhi.
Iss disha mein Aapke sarahneeya prayas ke liye badhayee.
samarthan karne layak aalekh...:)
band baja baraat me barat ke jagah banduk kyon...aur kab tak??
Vicharottejak lekhan..aapko padhana achchha laga Monika ji..keep it up.
कुछ इलाकों में शादी में चांदनी, छलनी कर दिए जाने का चलन है, सो टेंट वाले उसका किराया नहीं जोड़ते, कीमत ही लेते हैं.
बहुत सुन्दर कहा है आपने. मेरी बधाई स्वीकारें. - अवनीश सिंह चौहान
बिल्कुल सहमत हूँ आपसे। थोड़ी देर से आया हूँ। लेख में आपने हमेशा की तरह सार्थक विषय चुना है।
लोगो को समझना चाहिए कि ये सब बेकार के और जानलेवा दिखावे हैं। इनसे अवश्य बचना चाहिए।
thanks aapke sujhav ke liye dhanyawaad
computer ka vidhyarthi hone ke karan hindi kuchh bhool sa gaya hun...........parantu aap jaise gyaan ke bhandaaro se jarur kuchh sikh lunga aapke inhi sujhavo ke intjaar main
sagar
haa bahoot achchhi lekh hai
kuchh aur ki jaroorat hai...
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