विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है , पात्रता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है। ये सिर्फ शब्द नहीं हमारी जङे हैं। जङें, जिनमें जीवन का सार और संसार का आधार है। हो भी क्यों नहीं........? इन शब्दों में विद्यार्जन का लक्ष्य जो समाया है वो जीवन की समग्रता और सार्थकता की बात करता है केवल जीविका कमाने की नहीं। यानि ऐसा लक्ष्य जो हमें अच्छा मनुष्य बनने की राह सुझाता है ।
आज विद्या ददाति विनयं ...... नहीं, विद्या ददाति धनं .......की सोच हमारी मानसिकता बन चुकी है। बीते कुछ समय में विद्यार्जन के मायने ज्ञानार्जन न होकर सिर्फ पढाई तक सीमित हो गये हैं। पढाई यानि किताबी ज्ञान । पुस्तकें पढकर अव्वल रहने का ऐसा खेल जिसमें जीवन विद्या की तो बात ही नहीं होती। अब विद्या विनय और पात्रता के जरिये धन और धर्म को पाने का मार्ग नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ धन कमाने का मार्ग है। वैसे भी अब पात्रता से धन नहीं धन से पात्रता हासिल की जाती है।
विद्या को हमारे जीवन की वो विलक्षण संपदा माना जाता है जिसे जितना खर्च किया जाए उतनी ही बढती है । ज्ञानाजर्न की यही विशेषता वैचारिक प्रामाणिकता के साथ साथ जीवन जीने के संस्कार और संयम देती है। ऐसे में केवल धन जुटाने के ध्येय से ली जा रहीं डिग्रियां विद्या की सार्थकता को कम कर रही हैं। जीवन व्यवहार में शिक्षा का कोई प्रभाव नजर नहीं आता ।
मोटी तनख्वाह कमाने वाले नई पीढी के प्रतिनिधि हमारी संस्कृति और सभ्यता के सच्चे प्रतिनिधि नहीं बन पा रहे हैं। आज की किताबी पढाई बस एक दौङ बन कर रह गई है। इसमें आत्मसमान और कर्तव्यनिष्ठा की सीख नहीं जो देश को बौद्धिक एवं मानसिक रूप से परिपक्व और संवेदनशील सुनागरिक दे सके। विनय , अनुशासन और संस्कारित जीवन लक्ष्यों की प्राप्ति की सोच की कमी आज की पीढ़ी के व्यवहार में साफ़ नज़र आती है।
जीवन के हर क्षेत्र में आई अराजकता के इस दौर में आज किताबी ज्ञान के स्थान पर संस्कारित शिक्षा की नितांत आवश्यकता है। जो विद्यार्जन को केवल अर्थोपार्जन का साधन ही न बना दे। शिक्षा को ऐसे जीवन सिद्धातों से जोङना जरूरी है जो मानवीय मूल्यों का भी बोध कराये। संस्कार निर्माण का मार्ग सुझाये।
शत-प्रतिशत नतीजों के इस दौर में हम यह भूल ही गये ही गये हैं कि विद्या खुद को गढने की कला है। हमारे भीतर छिपी क्षमताओं और बुद्धिमता को उभारने का माध्यम। हमारी अनमोल विरासत को सहेजे रखने का वो ज़रिया जिसमें सदियों से यही माना गया है कि मनुष्यता को पाने में ही विद्या की गरिमा है।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर मां शारदे से यही प्रार्थना है की हम सबके जीवन में ज्ञान का निर्झर प्रवाहित करें .........!
शत-प्रतिशत नतीजों के इस दौर में हम यह भूल ही गये ही गये हैं कि विद्या खुद को गढने की कला है। हमारे भीतर छिपी क्षमताओं और बुद्धिमता को उभारने का माध्यम। हमारी अनमोल विरासत को सहेजे रखने का वो ज़रिया जिसमें सदियों से यही माना गया है कि मनुष्यता को पाने में ही विद्या की गरिमा है।
बसंत पंचमी के पावन पर्व पर मां शारदे से यही प्रार्थना है की हम सबके जीवन में ज्ञान का निर्झर प्रवाहित करें .........!
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें।
82 comments:
मंगलकामनायें आपको भी!
माँ शारदे न रूठें, बस।
आदरणीय मोनिका जी
आपने विद्या और उसके वास्तविक पहलुओं पर व्यापक रूप से प्रकाश डालते हुए आज के सन्दर्भों को उद्घाटित किया है ....निश्चित रूप से आज हम विद्या के मायनों से काफी दूर हैं ...आपका आभार
या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता |
या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना ||
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता |
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेष जाड्यापहा ||
हिंदी अनुवाद:
जो कुंद फूल, चंद्रमा और वर्फ के हार के समान श्वेत हैं, जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं|
जिनके हाथ, श्रेष्ठ वीणा से सुशोभित हैं, जो श्वेत कमल पर आसन ग्रहण करती हैं||
ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदिदेव, जिनकी सदैव स्तुति करते हैं|
हे माँ भगवती सरस्वती, आप मेरी सारी (मानसिक) जड़ता को हरें||
सुन्दर आलेख के लिए आभार.
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए....
आज का युग भौतिकवादी और बाजारवाद का इसमें तो धन से विधा ली और दी जाती है | इसी लिए बुजुग लोग वर्तमान को कलयुग कहते है |
वर्तमान सोच तो यह हो गई है कि धन होगा तो कई सरस्वतीसाधक आपके यहाँ सेवक बन हाजिर हो जावेंगे । ऐसे में यही कामना की जा सकती है-
वर दे वीणावादिनी वर दे,
धन के समतुल्य ज्ञान का भी स्तर अब करदे.
बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
.
सादर
आदरणीया डॉ.मोनिका जी बहुत ही सुन्दर आलेख आपको बसंत पर बधाई तथा शुभकामनायें |
आदरणीया डॉ.मोनिका जी बहुत ही सुन्दर आलेख आपको बसंत पर बधाई तथा शुभकामनायें |
बहुत ही सुन्दर आलेख ....शुभकामनायें ।
आदरणीय मोनिका जी
नमस्कार !
सुन्दर आलेख के लिए आभार
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए.
सर्वप्रथम तो बहुत ही सुन्दर लेख के लिए आभार ! व्यक्ति की भौतिकतावादी जीवन शैली उसके पतन के लिए जिम्मेदार है....
वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए.
पात्रता से धन नहीं धन से पात्रता हासिल की जाती
एक-एक पंक्तिया कितनी गहरी अर्थों को समेटे हुई है ..हम सभी आत्मसात करे तो सही मायने में ..विद्या की पूजा होगी .
वास्तविक अर्थों में वही विद्या अर्जित कर पाता है जो विद्या अर्जन के प्रयोजन से ही अध्ययन करता है। डिग्री और विद्या का स्पष्ट संबंध अदालत में भले नकारा न जा सके मगर वास्तविक जीवन में तो वह स्पष्ट है ही। एक दूसरा पक्ष यह भी है कि आदमी वास्तविक अर्थों में तो धन स निश्चिन्त नहीं हो पाता,मगर प्रायः,वास्तविक विद्या वही अर्जित कर पाए हैं जो एक हद तक अपनी बुनियादी आर्थिक ज़रूरतों से निश्चिन्त रहे हैं।
मोनिका जी,
हमेशा की तरह आपसे इस बार भी सहमत हूँ पर इस बार पूर्णतया नहीं......सिर्फ एक बात जो मुझे आपकी इस पोस्ट में ठीक नहीं लगी......"धन से धर्म"....मैं इससे बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ......धन का और धर्म का कहीं दूर का रिश्ता भी नहीं है हाँ ये एक दुसरे के विपरीत हो सकते हैं.......हाँ यहाँ मैं उस धर्म की बात नहीं कर रहा जिसे भीड़ मानती है धर्म उससे कहीं ऊँचा है...
हाँ धन से पुजारी को ख़रीदा जा सकता पर श्रद्धा नहीं.....माफ़ कीजिये पर मुझे जो लगा उसे कहना मैंने उचित समझा आप अन्यथा न लीजियेगा......बाकी आपकी हर बात तर्कयुक्त और माननीय है.......शुभकामनायें|
बसंत-पंचमी की मंगलकामनाएं.आपके विचार उत्तम एवं श्रेष्ठ हैं.यथार्थ का आईना हैं.मैं पूर्ण समर्थन करता हूँ.
काफ़ी विचारोत्तेजक, सशक्त, सार्थक और सुंदर आलेख के लिए आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
संदेशपरक है ये विमर्श ... आज का परिदृश्य ही बदल गया है जिसको आपने सही तरीके से बताया है ...सुन्दर आलेख ..बधाई
जिधर देखिये दिख रहा, उन्नति और विकास ,
काट रहे अपनी जड़ें , बस दौलत की प्यास !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
जिधर देखिये दिख रहा, उन्नति और विकास ,
काट रहे अपनी जड़ें , बस दौलत की प्यास !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
बसंत पर सुन्दर सारगर्वित प्रस्तुति...बधाई
सुन्दर आलेख
वसंत पंचमी की शुभकामनाए
एक समसामयिक चिंतन.. मंगलकामनायें आपको भी!
एक एक शब्द लगा रहा है जैसे मेरे ही ह्रदय के हों...
बहुत बहुत आभार आपका इस सुन्दर आलेख के लिए...
माता सबको सद्बुद्दी दें ... ये सब समझने का सामर्थ्य दें...
बिल्कुल सही बात कही आप ने आज सभी विद्या नहीं चाहते बस धन कमाने का साधन चाहते है |
behtarin prastuti.....vasant panchami ka din mere liye khaas hai..........
aapko vasant panchami ki dher saari shubhkaamna....
इस सुन्दर और सार्थक लेख के लिए आपको आभार।
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएँ।
आप पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद हमेशा बना रहे।
mangal kamna ke saath achchhe lekhan ke liye badhai
माँ सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे ......
सुन्दर आलेख ...!!
basant panchami ki hardik shubhkamnae.
@ इमरान अंसारी
किसी भी पाठक को अपने विचार खुलकर सामने रखने का पूरा अधिकार होता है तो आपने भी वैसा ही किया है..... स्वागत ....
जहाँ तक 'धन से धर्म' पाने की बात है धर्मं का अर्थ सिर्फ किसी खास तरह के कर्मकांड से ही नहीं है...... हाँ सही पात्रता से कमाया गया धन जब सद्कार्यों में लगाया जाता तो धर्म को पाना ही कहा जायेगा ...... यही वजह है संस्कृत के इस शलोक में सीधे धन या धर्म को पाने की बात नहीं की गयी है बल्कि जीवन के चरण बताये गए हैं ......विद्या से विनय .....विनय से पात्रता ...पात्रता से धन ..... और धन से धर्म ..... दोनों कतई एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं क्योंकि धन मनुष्यों की भलाई के लिए लगाया यह बात हर धर्म का मूल है......
basant panchmi ki hardik shubhkamnaye .aapse poori tarah sahmat hun .
bahut achchha aalekh .aapse poori tarah sahmat .basant panchmi ki hardik shubhkamnaye .
बहुत सुंदर रचना जी, बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
माँ सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्टात्री हैं ....मगर उनकी सत्कृपा से अर्जित ज्ञान महज धन पशु बन जाने के लिए नहीं ,खुद विद्या ,संस्कार ,जीवन मूल्यों की पुनरास्थापना के लिए होना चाहिए -सरस्वती उपासक को 'उल्लू' नहीं बन जाना चाहिए ...वह तो नीर क्षीर विवेक से युक्त मानसरोवर का राजहंस है .....
बसंत पंचमी पर मेरी भी शुभकामनाएं !
माँ सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्टात्री हैं ....मगर उनकी सत्कृपा से अर्जित ज्ञान महज धन पशु बन जाने के लिए नहीं ,खुद विद्या ,संस्कार ,जीवन मूल्यों की पुनरास्थापना के लिए होना चाहिए -सरस्वती उपासक को 'उल्लू' नहीं बन जाना चाहिए ...वह तो नीर क्षीर विवेक से युक्त मानसरोवर का राजहंस है .....
बसंत पंचमी पर मेरी भी शुभकामनाएं !
bahut achcha lekh hai.
अच्छी और सार्थक रचना। आपको बसंत पंचमी की शुभकामनाएं। मां सरस्वती आपकी लेखनी को यूं ही धार देती रहें।
Manushyta hi Viddya ki sarthakta ka mool hai.
Sunder aalekh ke ley Dhanywaad.
bahut achhi bate aapane batai hai. realy jisake paas sanskar nahi hai,usake paas kuchh bhi nahi.siksh hame dhairy aur dhan abhiman ( ghamand ) deta hai.birawadini bar de.
thank you monika ji.
आदरणीया मोनिका जी ,
भाग दौड के इस युग में ठहर कर माँ सरस्वती की याद दिलाने के लिए धन्यवाद.
प्रदीप नील www.neelsahib.blogspot.com
आदरणीया मोनिका जी ,
भाग दौड के इस युग में ठहर कर माँ सरस्वती की याद दिला दी आपने. धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है तो भी कृपया स्वीकारें
प्रदीप नील
www.neelsahib.blogspot.com
बहुत ही अच्छी बात आपने कही. सुंदर विचार. आपको भी वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए.
सुन्दर आलेख के लिए आभार वसंत पंचमी की शुभकामनाए.....
देर से आने की माफ़ी चाहती हूँ !
वीणा वाद्नी को मेरा नमन और आपको माँ का आशीर्वाद हमेशा बना रहें !
शुभ कामनाएं !
सबसे पहले तो माँ रेवा थारो पानी निर्मल गीत के लिए आभार.प्रवीण जी के ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी के रास्ते इस गीत तक पहुंचा.गीत में नदी जल सा ही प्रवाह है.
माँ शारदे से मेरी भी यही प्रार्थना-
माँ शारदे, ज्ञान दे, तार दे.
सुन्दर आलेख के लिए आभार... बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं........
आपको भी वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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पुत्र प्राप्ति के उपय।
क्या आप मॉं बनने वाली हैं ?
बहुत ही सुन्दर लेख के लिए आभार *****
शानदार एवं प्रभावी रचना।
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
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ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
मोनिका जी,
"विद्या ददाति धनं" हेडिंग देखकर एक बार मैं चौंक गया कि अरे ये आपने क्या कह दिया.
परन्तु आलेख को जैसे जैसे आगे पढ़ता गया तो मन प्रसन्न होता गया.
आपके लेखन से आपकी साफ़-सुथरी और निष्पक्ष सोच का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
सच, जब तक शिक्षा के साथ संस्कार नहीं बताये/पढ़ाये जायेंगे, ये हालत सुधरने वाले नहीं.
आपके लेखन का मैं कायल हूँ.
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.
माँ शारदे को नमन.
माँ सरस्वती के रूप ने मन मोह लिया !सार्थक प्रस्तुती !! बहुत बहुत धन्यवाद !
आज पहली बार आपके ब्लॉग में आने का सौभाग्य मिला और आपका परिचय पढ़कर मन बेहद प्रसन्न हो गया, रहा सवाल पोस्ट का तो वह भी सार्थक एवं प्रभावी है और मेरी कामना है की माँ सरस्वती का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे |
आज पहली बार आपके ब्लॉग में आने का सौभाग्य मिला और आपका परिचय पढ़कर मन बेहद प्रसन्न हो गया, रहा सवाल पोस्ट का तो वह भी सार्थक एवं प्रभावी है और मेरी कामना है की माँ सरस्वती का आशीर्वाद आप पर सदैव बना रहे |
मंगलकामनायें
maa sharde ki kirpa hum sab par bani rahe
hi monika! read your thoughts and am so glad, so many people...such a long list of readers and admirers of your thouths hit atthis page everyday. God bless you for being educated and letting education feel its spark on its very special day, through your words, understanding and these both enlightening so many people's perspectives. I feel happyto know so many people do want quality thought from any quarter. Thank you, I do, along with all these. Happy Basant Panchami, belated!
hi monika, i sent u msg just now. I hope u have understood its from me....you know who. maine desi angrezi me bheja hai, hindi me nahi. phir bhi kripaya grihan karen, lekhika mahodayaa.
from mumbai
खूबसूरत सन्देश देती पोस्ट..माँ शारदे की कृपा बनी रहे बस.
बहुत ही सुन्दर आलेख
bahut sahi kaha. ab to log janna v nahi chahte ki vinay kis chiriya ka naam hai.
sateek aalekh............
waakai vidya ke sahee mayne hum lagbhag bhula chuke hain..........
बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
"जीवन के हर क्षेत्र में आई राजकता के इस दौर में आज किताबी ज्ञान के स्थान पर संस्कारित शिक्षा की नितांत आवश्यकता है"
बिल्कुल सही लिखा है मोनिका जी आपने, आज विद्यार्जन ज्ञान के लिए नहीं, वोह तो मात्र एक सीढ़ी बन कर रह गयी है धन और पद के उच्च स्तर तक पहुँचने के लिए.
इस सोच को बदलने की आवश्यकता है. आज चारो तरफ भ्रष्टाचार, अराजकता और स्वार्थपरता का जो बोलबाला है उसको दूर करने के लिए समस्या को जड़ से दूर करने का उपाय करने की जरुरत है और वह सांस्कृतिक और मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना से ही संभव है.आपकी लेखनी बहुत शशक्त है, आपने एक लेखक का धर्म पूरी तरह से निभाया है इस ज्वलंत समस्या पर लिख कर, आज के समाज के सोये हुये अंतर्मन को जगाने का प्रयास किया है. बहुत बहुत धन्यवाद आपका.
वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.
मोनिका जी सटीक कहा आपने। आज ऐसा ही है।
हमें भी आपका सहयोग चाहिये.............आपकी लेखनी से.............एवं व्यक्तिगत सहयोग से..........ताकि हमारा संरक्षण, संवर्द्धन हो सके...................
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
सुंदर रचना ...
मंगलकामनायें आपको भी!
एक आधाभूत तथ्य की और इशारा करते हुए आपने माँ शारदे की स्तुति की है जिस में मैं भी शामिल हूँ. बस अब तो माँ शारदे ही भटकों को राह पर ला सकती हैं. बसंत पंचमी पर एक हटकर सार्थक सोच .
आपका लिखा पढ़ना हमेशा ही अच्छा लगता है और ज्ञान वर्धक भी होता है.बहुत ही सुन्दर आलेख आपको बसंत पर बधाई तथा शुभकामनायें |
monika ji bahut sunder lekh hai.
aaj shiksa vyapar ban kar rah gai hai.bahut badhiya likha hai.
mere blog par ane keliye bahut bahut shukriya......
bahut sunder lekh.....
ज्ञान-धन से बड़ा कोई धन नहीं है।
मां शारदे को नमन।
व्यवसायिकता के दौर शिक्षा का भी व्यापारीकरण हो चूका है पहले शिक्षा के स्थल ज्ञान के मंदिर कहलाते थे!अब शैक्षणिक स्थल मल्टीप्लेक्स में तब्दील हो चुके है ..........
कुछ व्यस्तताओं के बीच आना कम हो पा रहा है, क्षमाप्रार्थी.
हमेशा आप बहुत अच्छा टॉपिक उठाती हैं..इस बार भी...एकदम सहमत हूँ आपकी बात से..
माँ शारदा की कृपा बने रहे !हार्दिक शुभकामनायें !
khubsurati va sandesh ka sarhaniy mishran-***
वर दे वीणावादिनी.
माँ शारदे के प्रणाम.माँ की कृपा सदा बनी रहे.
बेहद सुन्दर लेख ..... सही समय पर ... आपको भी बसंत पंचमी की ढेर सारी शुभकामनाएं
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