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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

17 June 2010

खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है तो उन्हीं आँखों में अश्लीलता क्यों नहीं हो सकती?

आजकल हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में महिलाओं के साथ होने वाली छेङछाङ और यौन हिंसा के खिलाफ़ लगभग एक सी दलीलें दी जाने लगी हैं। किसी महिला के साथ कोई अनहोनी होते ही हमारे आसपास एक अजीब सी फुसफुसाहट शुरू हो जाती है कि उसने क्या पहना था ? कितना पहना था ? उस वक्त वो फलां जगह क्या कर रही थी? वगैरह वगैरह । ऐसे वाहियात सवालों के ज़रिये पूरा समाज और सिस्टम उस महिला कि पोशाक को अमर्यादित बताकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोने लगता है। जबकि हकीकत यह है कि पारंपरिक परिधानों में भी महिलाओं के साथ ईव टीजिंग और बलात्कार की घटनाएँ होती हैं। ऐसे हालात में सबसे ज्यादा अफ़सोस तो तब होता है जब इस दर्दनाक स्थिति से गुजरने वाली महिला को ही कटघरे में खड़ा कर देने वाले लोगों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं होता कि अगर किसी औरत के कपड़े ही उसके साथ हुए अश्लील व्यव्हार के लिए जिम्मेदार हैं तो साल भर कि भी उम्र पार न करने वाली मासूम बच्चियों के साथ आये दिन ऐसी घटनाएँ क्यों होती हैं? इतना ही नहीं क्यों वे उम्र दराज़ औरतें ऐसी वीभत्स घटना का शिकार होती हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ पारंपरिक लिबास ही पहने हैं। यह शर्मनाक है कि इस तरह के स्त्री विरोधी स्वर नारी कि अस्मिता पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं।

बचपन से एक कहावत हम सब सुनते आये हैं कि ''खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है" मेरा सवाल पूरे समाज और सिस्टम से कि अगर खूबसूरती देखने वाले कि आँखों में होती है तो उन्हीं आँखों में अश्लीलता क्यों नहीं हो सकती? बात जब अश्लीलता कि आती है तो उसे औरतों के पहनावे पर क्यों थोप दिया जाता है ?