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पढ़ने लिखने में रुचि रखती हूँ । कई समसामयिक मुद्दे मन को उद्वेलित करते हैं । "परिसंवाद" मेरे इन्हीं विचारों और दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जो देश-परिवेश और समाज-दुनिया में हो रही घटनाओं और परिस्थितियों से उपजते हैं । अर्थशास्त्र और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर | हिन्दी समाचार पत्रों में प्रकाशित सामाजिक विज्ञापनों से जुड़े विषय पर शोधकार्य। प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ( समाचार वाचक, एंकर) के साथ ही अध्यापन के क्षेत्र से भी जुड़ाव रहा | प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के परिशिष्टों एवं राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लेख एवं कविताएं प्रकाशित | सम्प्रति --- समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र लेखन । प्रकाशित पुस्तकें------- 'देहरी के अक्षांश पर', 'दरवाज़ा खोलो बाबा', 'खुले किवाड़ी बालमन की'

ब्लॉगर साथी

01 October 2010

इंसानियत गढ़ती है स्त्री....!


इंसानियत गढ़ती है स्त्री...ये शब्द हैं राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के , जिनके विचार हर दौर में प्रासंगिक थे पर आज असमानता और हिंसा भरे समाज में कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक प्रतीत हो रहे हैं। आज के दिन उन्हें नमन करते हुए उनके सद्विचारों की बात....



गांधीजी हमेशा से ही सर्वोदय यानि समग्र विकास की सोच को लेकर आगे बढे, जिसमें पूरे समाज की उन्न्ति की बात की गई। बापू का मानना था कि ‘ महिला और पुरूष के बीच कोई भेद नहीं समझा जाना चाहिए, वे सिर्फ शारीरिक तौर पर एक दूसरे से भिन्न हैं। ’ गौरतलब है कि आज भी हमारे समाज में महिलाएं कई तरह के भेदभाव का शिकार होती है। ऐसे में उनकी यह प्रेरक विचारधारा पूरे समाज को नई राह दिखाने के लिए आज भी प्रासंगिक है। बापू के शब्दों में ‘ पत्नी पति की गुलाम नहीं बल्कि एक साथी और मददगार है जो उसके सुख-दुख में बराबर की भागीदार होने के साथ-साथ पति के समान ही अपने रास्ते स्वयं चुनने के लिए भी स्वतंत्र है। ’ हालांकि हमारे संविधान में भी महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार दिये हैं पर सच यह भी है कि इस दिशा में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है । उनका मानना था की ‘ स्त्री जीवन के समस्त धार्मिक एवं पवित्र धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। ’ जिसका सीधा सा अर्थ यह है कि औरत इंसानियत को गढ़ती है। उसके व्यक्तित्व में प्रेम, सर्मपण, आशा और विश्वास समाया हुआ है। खासकर यदि हमें एक गैर हिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं की क्षमता पर भरोसा करना आवश्यक है। ‘ स्त्री को अबला कहना अपराध है। यह पुरूष का स्त्री के प्रति अन्याय है। यदि शक्ति का अर्थ बर्बर शक्ति है तो अवश्य ही स्त्री पुरूष की अपेक्षा कम बर्बर है। यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है तो स्त्री पुरूष से कई गुना श्रेष्ठ हैं। यदि हमारे अस्तित्व का नियम अहिंसा है तो भविष्य स्त्री के हाथ है।’ यानि बापू ने जिस सद्भावपूर्ण समाज की परिकल्पना की थी उसका आधार वे महिलाओं को मानते थे। क्योंकि महिलाएं बच्चों कि परवरिश के दौरान ही ऐसे विचारों के बीज उनके मन में बो सकती हैं जो उनके अंतस को प्रकाशवान कर उन्हें सही मार्ग पर ले जायें । आज दुनिया के हर हिस्से में हो रहे खून-खराबे के दौर में महिलाओं से जुड़े बापू के यह विचार सचमुच साबित करते हैं कि स्त्री किस तरह से एक गैर हिंसक समाज की रीढ़ बन सकती है।



बापू ने हर क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को अहम् माना। उनका सोचना था की संसार केवल घर तक ही सीमित क्यों ? यह भी कहना था बापू का। जिन्होने बरसों पहले ही रूढिवादी समाज में महिलाओं की घुटन को महसूस कर लिया था। बापू मानते थे कि देश के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक उत्थान में महिलाओं की अहम भूमिका है। बापू ने इस बात की पुरजोर वकालत की कि महिलाओं को सिर्फ चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। गांधीजी सहशिक्षा के भी समर्थक थे। उनका मानना था कि लड़के लड़कियों को साथ पढने और मिलने-जुलने का मौका देना चाहिए। वे लड़कियों को तालों में बंद रखने में विश्वास नहीं करते थे। शायद यही वजह थी कि बापू ने महिलाओं से देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का भी आग्रह किया था। बापू के ये विचार इतने वर्ष बीत जाने के बाद हमें इस बात की याद दिलाते हैं कि उन्होंने हमेशा महिलाओं को असहाय की छवि से न केवल बाहर निकालने की कोशिश की बल्कि उनमें सामाजिक विषमताओं और विद्रूपताओं से लड़ने की आशावादी सोच को भी जागृत किया।

दहेज जैसी कुरीति को समाप्त करने के बारे में बापू का कहना था की "विवाह अभिभावकों के द्धारा पैसे के लेनदेन की व्यवस्था नहीं होना चाहिए । विवाह में एकमात्र सम्मानजनक आधार परस्पर प्रेम और परस्पर स्वीकृति होती है।" इसीलिए बापू ने एक बार कहा था कि " अभिभावक लडकियों को यह सिखायें कि वे विवाह के लिए पैसे मांगने वाले युवक से शादी करने से इंकार करें। इन अपमानजनक शर्तों पर विवाह से बेहतर है कि वे अविवाहित रह जायें।" इतना ही नहीं बापू का मानना था कि महिलाएं सांप्रदायिकता, जातिवाद और छुआछूत जैसी कुरीतियों से निजात पाने में भी भूमिका निभा सकती है। यकीयनन आज हमारे देश बढ़ रही दहेज हत्या, घरेलू कुछ और दूसरी सामाजिक कुरीतियों के चलते महिलाओं के जीवन में आनें वाली कठिनाइयों के इस दौर में ये विचार पूरी तरह प्रासंगिक और व्यवहारिक हैं। बस जरुरत है तो इस बात की कि हम इन बुराइयों का प्रतिकार करने की क्षमता विकसित करें यही सच्ची श्रधांजलि होगी बापू के लिए जिन्होंने हमेशा यही माना की जीवन का आधार है स्त्री.........!

51 comments:

वाणी गीत said...

स्त्री इंसानियत गढ़ती है ...सचमुच ..!
बापू की स्त्रियों के प्रति सकारात्मक सोच को प्रस्तुत करने के लिए आभार ...!

दिगम्बर नासवा said...

बापू भी उन समाज सुधारकों में से एक हैं जिन्होने नारी उत्थान के लिए बहुत काम किया है .....गाँधी जयंती और शास्त्री जी का जनम दिन ..... बहुत बहुत मुबारक ....

प्रवीण पाण्डेय said...

राष्ट्रपिता को नमन, सुन्दर स्त्री विमर्श।

राज भाटिय़ा said...

आप के लेख ओर बापू की बातो से सहमत है, एक नारी ही बच्चे को अच्छॆ संस्कार दे कर देश का अच्छा नागरिक बना सकती है, ओर जिस देश के नागरिक अच्छॆ संस्कारो के होंगे वो देश महान ही होगा. धन्यवाद

Hindi Tech Guru said...

गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....

Hindi Tech Guru said...

गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....

Manoj K said...

गांधीजी के विचारों का विवरण पसंद आया. मैं गांधीजी और उनको आदर्शों की बहुत क़द्र करता हूँ और जीवन में उन्हें उतरने की भरसक चेष्ठा.

आभार
मनोज खत्री

अनामिका की सदायें ...... said...

सच कहा नारी ही इंसानियत गढती है.
सुंदर प्रस्तुति.

उपेन्द्र नाथ said...

गांधी जी को याद करती हुई एक बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

गाँधी जी के दर्शन की उम्दा प्रस्तुति!
सहमत हूँ!
आशीष
--
प्रायश्चित

Sunil Kumar said...

गाँधी जी शत शत नमन इसी लिए तो आज का दिन है स्मरणीय है

अजय कुमार said...

गांधी-दर्शन अब वोट की राजनीति में फंस सा गया है ।
अच्छा लेख ।

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सही कहा। समाज की दशा और दिशा नारी की हाथ है और उसका दायित्व भी। बापू जी की सोच और उनके जीवन मे तो पूरा जीवन दर्शन भरा पडा है। शुभकामनायें।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

आपका आलेख बहु अच्छा है.......गाँधी जयंती पर गाँधी जी को याद करने का ये नायाब तरीका... और महिलाओ के प्रति गाँधी जी के मन में स्त्री के लिए सम्मान और इंसानियत और बच्चों के मन को गड़ने में स्त्रियों का हाथ होना ये बता कर गाँधी जी ने नारी की महत्ता को बढाया है.. गाँधी जी को नमन और आपको धन्यवाद..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जीवन के सच को बखूबी बयान किया है आपने।
................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

ZEAL said...

wonderful post !

Asha Joglekar said...

गांधी जयंती के अवसर पर बापू के विचारों में नारी के स्थान की बहुत अच्छी प्रस्तुति है आपकी । नारी ही अपनी संतान को गढती है पर्याय से वह इन्सान और समाज को भी गढती है । हम नारियां अगर अपनी जिम्मेदारी समझें और सिर्फ अपने बच्चों पर अच्छे संस्कार करे तो देश में क्या विश्व में भी सब अच्छे इन्सान ही होंगे । यही होगी बापू को सच्ची श्रध्दांजली ।

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दर लेखन, इस प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

badi aalekh...sadhuwaad.....

रंजू भाटिया said...

बहुत बह्दिया लगा यह लेख .शुक्रिया

Manoj Kumar said...

बहुत ही बढ़िया आलेख है. धन्यवाद. कभी भूलते भटकते सृजन संसार में भी आईए. नया प्रयास है आने से उत्साह बढेगा. वेलकम.

Smart Indian said...

सुन्दर विमर्श, धन्यवाद।

स्वप्न मञ्जूषा said...

aapki baat bilkul sahi hai...
maa ke haathon hi insaniyat sanvarti hai..

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ वाणी गीत बहुत बहुत धन्यवाद आपका....

@दिगम्बर नसावा जी सचमुच नारी उत्थान में बापू की बडी भूमिका रही है .....

@प्रवीण पाण्डेय शुक्रिया आपका

@ राज भाटिया जी सही कहा आपने एक नारी ही बच्चे को संस्कार देकर

सुनागरिक बना सकती है ।

@ मयंक भारद्वाज धन्यवाद आपका

Archana writes said...

bilkul sahi samay par khubsurat prastuti...happy ghandhi jayanti

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ मनोज गांधीजी के आदशों को हम सब अपने जीवन में उतारें इसी की आवश्यकता है....

@अनामिका की सदायें
@उपेन्द्र
आपका हार्दिक आभार

@ सुनील कुमार
@ अजय कुमार @ आशीष
सचमुच गाँधी दर्शन को भी वोते की राजनीति में उलझा दिया है.....धन्यवाद आप सबका....

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सुन्दर आलेख है ... आज के लिए और ज्यादा प्रासंगिक !

Pawan Kumar said...

स्त्री शक्ति को सादर प्रणाम.
बापू ने जो कहा था सच कहा था......आज हर जगह महिलाएं सर्वोच्च शिखर पर हैं....!
बापू के जन्मदिवस पर सार्थक लेख पोस्ट करने का आभार.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ निर्मला कपिला जी
बहुत सुंदर विचार ... समाज की दशा और दिशा सचमुच नारी की प्रभावी भूमिका होती है.......

@ डॉ नूतन नीति ...बहुत बहुत शुक्रिया।

@ जाकिर अली रजनीश
@ zeal
आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Yashwant R. B. Mathur said...

आप सभी को हम सब की ओर से नवरात्र की ढेर सारी शुभ कामनाएं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इस शिक्षाप्रद आलेख के प्रकाशित करने के लिए
आपको कोटिशः धन्यवाद!
--
राष्ट्रपिता बापू जी को नमन!

अंजना said...

सुन्दर प्रस्तुति....

नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

hem pandey said...

दहेज़ के बारे में गांधीजी के जो भी विचार रहे हों, यह अभिशाप आज भी समाज में मौजूद है | लोग आज भी स्वेच्छा से, दिखावे के लिए ,वर पक्ष के दबाव में या कभी कभी लड़की की इच्छा पूरी करने के लिए , अपनी हैसियत से ज्यादा दहेज़ दे रहे हैं |

Urmi said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको एवं आपके परिवार को नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!

कविता रावत said...

बापू के नारी विषयक सामाजिक जीवन मूल्यों की आज सख्त जरुरत महसूस होती है.. उनकी सत्य अहिंसा का अभेद अस्त्र भला कौन और कितने दिन झुठला सकता है...
...बहुत अच्छी और सार्थक जानकारी
आपको और आपके परिवार को नव दुर्गोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ

महेन्‍द्र वर्मा said...

यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है तो तो स्त्री पुरुष से कई गुना श्रेष्ठ है...यह कथन निस्संदेह सत्य है। मानव जीवन में नारी की भूमिका अद्वितीय है। सामयिक और विचारपूर्ण आलेख के लिए बधाई।

महेन्‍द्र वर्मा said...

यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है तो तो स्त्री पुरुष से कई गुना श्रेष्ठ है...यह कथन निस्संदेह सत्य है। मानव जीवन में नारी की भूमिका अद्वितीय है। सामयिक और विचारपूर्ण आलेख के लिए बधाई।

पूनम श्रीवास्तव said...

बहुत ही अच्छा लेख लिखा है आपने…इतनी सुंदर प्रस्तुती के लिये बधाई।

Anonymous said...

bahut hi sundar prastuti...
सुनहरी यादें ....

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

मोनिका जी,बापू के दर्शन और उनके नजरिये से स्त्री की महत्ता को आप्ने बखूबी रेखांकित किया है इस लेख में। अच्छा लगा आपका यह लेख्।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ यशवंत माथुर
बहुत बहुत धन्यवाद शुभकामनायें आपको भी......

@डॉ रूपचंद्र शास्त्री मयंक
आपका हार्दिक आभार ब्लॉग पर आने और इतनी अर्थपूर्ण टिप्पणी देने के लिए...

@ अंजना धन्यवाद आपको भी शुभकामनायें

@ हेम पाण्डेय आप बिल्कुल सही कह रहे हैं ... समाज आज भी दहेज़ का अभिशाप है ...
अफ़सोस.....

@ बबली शुक्रिया आपको भी शुभकामनायें

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ आशाजी बिल्कुल सही बात है.... नारी ही अपनी संतान को गढ़ती है....

@ सदा धन्यवाद आपका

@ योगेन्द्र जी बहुत बहुत आभार

@ रंजना जी .... धन्यवाद

@ मनोज कुमार .... धन्यवाद मनोज जी

@smart indian शुक्रिया

@ अदा शुक्रिया आपका

Umra Quaidi said...

सार्थक लेखन के लिये आभार एवं "उम्र कैदी" की ओर से शुभकामनाएँ।

जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बना जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!

अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।

आपका शुभचिन्तक
"उम्र कैदी"

Priyanka Soni said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

vijai Rajbali Mathur said...

Monikaji,
Aapki tippni ke madhyam se yahan pahunche aur aap ke vichar jan kar khushi hui ki aaj ki jwalant samasya per aapne Gandhiji ke vicharon ko suvyavasthit tarike se rakha.sach me ye aaj bhi bahut prasangik hain.

Umra Quaidi said...

सार्थक लेखन के लिये आभार एवं “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।

जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बन जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!

अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
http://umraquaidi.blogspot.com/

आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”

हरकीरत ' हीर' said...

खासकर यदि हमें एक गैर हिंसक समाज का निर्माण करना है तो महिलाओं की क्षमता पर भरोसा करना आवश्यक है। ‘ स्त्री को अबला कहना अपराध है। यह पुरूष का स्त्री के प्रति अन्याय है। यदि शक्ति का अर्थ बर्बर शक्ति है तो अवश्य ही स्त्री पुरूष की अपेक्षा कम बर्बर है। यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है तो स्त्री पुरूष से कई गुना श्रेष्ठ हैं। यदि हमारे अस्तित्व का नियम अहिंसा है तो भविष्य स्त्री के हाथ है।’

मोनिका जी आपकी ये पंक्तियाँ सहेजने लायक हैं .....
गुरु नानक ने भी कहा था ....सो क्यों मंदा आखिए जिन जम्मे राजन ....अर्थात जिसने राजाओं को जन्म दिया उसे मंदा क्यों कहा जाये .....?

सुधीर राघव said...

बहुत खूब। सकारात्मक सोच को प्रस्तुत करने के लिए आभार ...!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

@ कविता जी बहुत बहुत शुक्रिया सचमुच नारी विषयक
जीवन मूल्यों की आज सख्त ज़रुरत है....

@ महेंद्र जी आपसे पूर्णतः सहमत
@झरोखा
@ शेखर सुमन
@ हेमंतजी
आप सबका हार्दिक धन्यवाद

Girish Kumar Billore said...

बहुत उम्दा प्रस्तुति

Anand Rathore said...

bahut badhiya pst.. kash har ladki ka pita bapu jaisa hota... pls read my next post about naryan krishnan ..its very important ..and pls vote for him.. and tell as many as u can.. u may make this as your own post .. regards

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