मेरे हिस्से ना आया...... !
तुम्हारा गीला बिछौना, रातों का रोना
ना ही आईं थपकियाँ, न लोरी, न पालने की डोरी
न आंसू बहाना, ना तुम्हें गोदी में छुपाना.....
तुम्हारा गीला बिछौना, रातों का रोना
ना ही आईं थपकियाँ, न लोरी, न पालने की डोरी
न आंसू बहाना, ना तुम्हें गोदी में छुपाना.....
न साज-संभाल करने वाले हाथ, न ही कोई उनींदी रात
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ..............!
मेरे हिस्से आया.........
अल-सुबह घर से निकलना
कुछ तिनकों की तलाश में
एक नीड़ सहेजने की आस में
ताकि सांझ ढले जब लौटूं
तो गुड़िया, मुनिया और छोटू
सबके चहरे पर हो खिलखिलाहट
सुनकर मेरे कदमों की आहट
तब मेरा तन भले ही मैला हो
बस...! हाथ में खिलौनों भरा थैला हो
बस...! हाथ में खिलौनों भरा थैला हो
इन पलों में मैं भी बचपन को जीता हूँ...
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ........!
मुझे तो समझनी है.......
तुम्हारी हर इच्छा, हर बात
लाकर देनी है तुम्हें हर सौगात
खिलौने, गुब्बारे और मिठाई
कपड़े , किताबें, रोशनाई
तुम्हारा हर स्वप्न करूँ पूरा
नहीं तो मैं रहूँगा अधूरा
बस ! इसी सोच के साथ जीता हूँ...
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ.......!
मुझे बनना है घर का हिमालय
बलवान, अडिग और अटल
मज़बूत कंधे मौन संबल
तुम्हारा आदर्श, जीवन का मान
तुम्हारी जीत पर गर्वित
और हार पर धैर्यवान.....!
मेरे कम शब्द और गहरी आवाज़
अनुशासन , अभिव्यक्ति का राज़
वक़्त की धूप में पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे.... और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ .....!
72 comments:
पिता की भूमिका को अच्छे से उकेरा है आपने...
अच्छी लगी.... पिता का अहम योगदान परिलक्षित करती हुई कविता!
आशीष
--
प्रायश्चित
ati sunder...........
man by narure sentimental nahee hote ye bhranti hee hai.............
bahut sahee aur badiya lekhan.....
Aabhar
पिता पर आपकी ये रचना .. माँ के साथ साथ पिता का भी जो योगदान है एक बच्चे के विकास में, जिसको आपने बहुत सुन्दर ढंग से उकेरा है .. शुभकामना
पिता का दर्द भीतर भीतर ही बहता है, दिखता नहीं।
वाह, पापा लोगों के लिए अच्छी कविता...
____________________
'पाखी की दुनिया' के 100 पोस्ट पूरे ..ये मारा शतक !!
वक़्त की धूप में
पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे....
और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं
भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ ...
पिता के मन के भावों को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है ...बहुत अच्छी रचना ..
monika....bahut bahut sundar likha hai..so touchy!
एक अंतरसलील को आपने सतह पर ला दिया है ... बेहतरीन !
मन को छू गई आपकी यह सुन्दर कविता |
पिता की अनुशासन की धूप न हो तो ममता की छाँवका अहसास कैसा हो ?
बहुत अच्छा लगा एक पिता को समझना |
पिता के मन की गहराई तक पहुँच कर लिखी गई कविता.. बहुत सुंदर! अब तक बस केवल माँ को ही समझने की कोशिश की गई है..
adbhut post badhai dr.monikaji
पिता के दर्द को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है……………यही तो पिता की दुविधा होती है जिसे वो कभी कह नही पाता अपना दर्द दर्शा नही पाता वरना दिल तो उसमे भी वैसे ही धडकता है जैसे माँ मे…………ऐसी ही एक रचना मैने भी लिखी थी।
wakai monika ji, aapne ek pita ke man me chalte antar-dvand v unke kartavyo ka ehsaas tath pita ki naitik jimmedariyan jo vo bakhubi nibhane ka prayas karte hai kewal bachon ke chehare par hansi lane ke liye,chahe uske liye unhe kitni hi mushkilo ka samna karna pada ho,ko bahut bahut hi sndar shabdo me paribhashit kiya hai.
behatreen prastuti.
poonam
मोनिका जी आज आप की कविता ने मन जीत लिया, बहुत सुंदर ढंग से आप ने एक पिता के मन की स्थित व्यान की हे, बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद
पिता की भूमिका और आखिरी पहरे मे पिता के दिल के दर्द को बखूबी उकेरा है। बहुत भावमय सुन्दर रचना है। बधाई।
कोई शब्द कोई एहसास शायद ही छूटा हो जो आपने ना उकेरा हो. बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति जो हमेशा याद रहेगी.
.
बहुत अच्छी लगी ये रचना...पिताजी की याद आ गयी...बहुत दूर हैं...मिल भी नहीं सकती...
.
पिता का प्यार क्या खूब उकेरा है आपने.
इतना सब होकर भी रीता हूँ,
क्योंकि मैं एक पिता हूँ...
इन दो पंक्तियों में एक पिता के सारे संघर्ष और जीवन के दिन-रात छुपे हैं.
खूब... ऐसे ही लिखते रहिये...
मनोज
बहुत अच्छी रचना। एक पिता के दिल की बातों को आपने जिस सुजीदगी से रखा है वह तारीफ के लायक है। बधाई हो, इतनी अच्छी रचना के लिए।
अतुल श्रीवास्तव
atulshrivastavaa.blogspot.com
@ उपेन्द्रजी
बहुत बहुत आभार
@ आशीष
शुक्रिया आशीष
@ apanatva सच कहा आपने यह एक भ्रान्ति ही है की पुरुष भावुक नहीं होते ।
@डॉ नूतन नीति धन्यवाद
मैं यही मानती हूँ माँ के साथ साथ पिता का पूरा योगदान होता है बच्चे को बड़ा करने में.....
@ प्रवीण पाण्डेय सच में पिता का दर्द दिखता नहीं है.... पर होता है ना....!
@ पाखी
धन्यवाद
@ संगीता जी
बहुत बहुत आभार आपका
@ Parul thanks parul
@ indranil ji ji हाँ पिता की बातें अंतरसलिल ही रहती हैं..... सतह बिल्कुल शांत और गंभीर
@ शोभना चौरे ... धन्यवाद बड़ा मुस्किल पिता के मन को समझना मेरी बस एक कोशिश ....
@ Arun c roy ji धन्यवाद आपका....
अत्यंत भावपूर्ण.
आशा है किसी को नाराज़गी नहीं होगी.
इस योगदान पर कम ही लिखा गया है अब तक ..हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही सुन्दर रचना..प्रसंशा के लिए शब्दों की कमी महसूस हो रही है..
बहुत ही भावपूर्ण रचना... एक बहुत सुन्दर कविता !
पिता पर लिखी यह रचना, इसके भाव मन को छू गये, बहुत ही सुन्दर अनुपम प्रस्तुति ।
..... शून्य....
सब शून्य सा कर दिया इन पंक्तियों ने..
बहुत भावपूर्ण रचना...
इस आशय की एक कविता हमने भी अपने ब्लॉग पर लिखी है।
http://punarjanmm.blogspot.com
@ जयकृष्ण जी
आपका आभार
@ वंदनाजी
सच पिता का प्यार अप्रदर्शित रहता है...तभी समझने में देरी होती है....
@झरोखा
जी पूनमजी पिता का पूरा जीवन परिवार की खुशियाँ जुटाने में चला जाता है.....
@ राज भाटिया जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद ... इस प्रोत्साहन के लिए आभार
@ निर्मला कपिला जी
बहुत बहुत शुक्रिया...
पिता का भाव एक माँ ने बहुत अच्छा उकेरा है
धन्यवाद्, मैं भी एक पिता हूँ
kisi stree ke liye purush maanasikata ko samajhana man ka ek paroksha vyapaar hai ,atah yah kavita ek sashakta abhivyakti hai .
मातृत्व के सुख की समझ को सुंदरता से अभ्व्यिक्त करती और पितृत्व के कर्तव्यों की व्याख्या करती एक बेहतरीन कविता...बहुत ही सशक्त रचना बधाई।
पिता के दर्द को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है
हर पंक्ति लाजवाब---और गहन अनुभूतियों को प्रतिबिम्बित करने वाली।
सर्वप्रथम मुँशी पेमचंद पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.....ऐसे ही हौसला बढ़ाते रहें.....धन्यवाद...बहुत ही सुन्दर रचना.......ऐसे में कई बार अल्फाज़ नहीं मिलते कुछ कहने को.....एक पिता के जज्बातों को इस खूबसूरती से बयां किया है आपने....वाह ...बहुत ही सुन्दर........अपनी पिछली गलती को सुधारते हुए आज ही आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ....शुभकामनाये|
6/10
ह्रदय-स्पर्शीय रचना
ताजगी भरी पोस्ट
Monikaji
Pita ke manobhavon ka yatharth aur marmik chitran hai aapki kavita .yah sakaratmak aur prernadayee bhi hai .
मोनिका जी एक पिता की भावनाओं को बखूबी उतरा है आपने .....
बहुत सुंदर ....!!
"वक़्त की धूप में
पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे....
और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं
भीतर से रीता हूँ........
क्यूँकी मैं एक पिता हूँ ..."
एक पिता के अंतर्मन के जटिल एव संश्लिष्ट संसार का ऐसा सूक्ष्मतम और बहुआयामी चित्रण. दिल को छू लेने वाली खूबसूरत रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
@ अनामिका की सदायें
उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया .....
@ Zeal
आपकी टिप्पणी ने तो आँखें नाम कर दीं..... दिव्या जी
@ मनोज
शुक्रिया मनोज ...
@ अतुल श्रीवास्तव
धन्यवाद अतुलजी
@ काजल कुमार
धन्यवाद ..... मुझे भी ऐसा ही लगता है............
@ सतीश जी
लिखा भले ही कम गया है..... पर योगदान तो है ही.....
@साकेत शर्मा
धन्यवाद साकेत ......
@ प्रियंका सोनी
शुक्रिया प्रियंका .....
@ sada
बहुत बहुत धन्यवाद सदाजी .......
@अमित तिवारी
पिता की मन की गहराई ऐसी ही होती है.... अमित
धन्यवाद आपका
bahut achhi rachna
aapki kavitaye mujhe achhi lagti hai
isliye mai aapke blog ka anusaran kar rahi hu
मां पर तो बहुत सी कविताएं पढ़ीं एक स्त्री होकर पिता की भावनाओं को इतनी सुंदर अभिव्यक्ति दी, सराहनीय है। आपको बहुत-बहुत बधाई। बहुत ही सुंदर कविता।
सत्य है गीला बिछौना तो मां के हिस्से में ही आता है।दूसरे पद मंे पिता के अरमान उसकी इच्छायें। तीसरे पद में एक अभाव ग्रस्त पिता चौथा पद पिता एक दृढ निश्चय और अन्तिम पद में अन्दर से उठती एक ठंडी किन्तु गहरी श्वास
बहुत सुन्दर चित्रण - विशेषकर एक पिता की दृष्टि से.
सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।
सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।
खुशी हुई कविता पढ़कर। हम पिताओं की व्यथा तो किसी ने जाना।
सुंदर रचना।
मोनिका जी,
माँ की अनुपम ममता के सम्मुख पिता का पितृत्व (वस्तुतः ‘स्नेह’)प्रायः उपेक्षित ही रहा है; इस पर बहुत कम लिखा गया। आपकी दृष्टि इस अनछुए बिन्दु पर गयी,यह अपने आपमें ख़ास बात है।
सबसे ख़ास बात तो यह कि एक माँ ने ‘पिता’ पर कविता लिखी है।...सुन्दर कविता पर बधाई!
पिता के भाव पूरी शिदत से अभिव्यक्त हुए है ....
सुंदर रचना
मोनिका जी
और इसी के साथ मैं आपका साठवां समर्थक
sabke papa kya ek se hotein hain...maine apne pita ki barsi par aaj apne blog par kuch likha hai...shayad wo aapka bhi sach ho...
yoursaarathi.blogspot.com
neelesh jain
Mumbai
neelesh.nkj@gmail.com
बहुत ही सुन्दर रचना ! पिता के जज़्बात आपने इतनी अच्छी तरह उकेरा है ...
@ ब्रिजेश जी
आपका शुक्रिया
@ ओम प्रकाश पाण्डेय जी
बहुत बहुत शुक्रिया इस उत्साहवर्धन करने वाली टिप्पणी केलिए......
@ महेन्द्रजी
धन्यवाद आपका
@ शुक्रिया संजय ... आपको रचना अच्छी लगी आभार
@ इमरान
बहुत बहुत शुक्रिया
@ उस्तादजी
अबकी बार ६ नंबर ... चलिए आगे और बेहतर करने की कोशिश रहेगी
धन्यवाद
@ हरकीरत जी
बहुत बहुत शुक्रिया
@ डोरोथी जी
मेरे ब्लॉग पर आने और इस सुंदर टिप्पणी का लिए धन्यवाद
bahut sundar rachna
samay ho to yah link jaroor padiyega
http://sanjaykuamr.blogspot.com/2010/04/blog-post_26.html
WOW!
पिता पर इतनी अच्छी कविता बहुत कम पढ़ने को मिली है. बेहद खूबसूरती और सादगी से कही गयी कविता. शुक्रिया.
देर से आया किन्तु इस भावपूर्ण रचना को डूब कर पढ़ा..बहुत सुन्दरता से उतारा है...बधाई.
अधिकतर माँ पे कवितायेँ पढ़ने को मिलती है, पिता पे कम ही पढ़ने को मिलती है..
अच्छा लगा..
asardar kavita... dil ko choo lene wali... aapki pahli kavita padhi bahut achcha laga... ab to blog padhna padega...
bahut hi khoob . shekhawati ri khas jhalak
पिता जी की तकलीफों को समझने के लिये आभार।
pita ke antarman ko kaafi samjha hai, aankhen nam ho aayin
is rachna ko vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per
... bahut sundar ... behatreen !!!
pita ki yeh rachna ek nayi khoj hai log pita ko keval paise kamane ki masin samajhte hai achhi marmik rachna
पांच बात पढ़ चुकी हूँ इस कविता को और अबतक अपने सभी परिचितों को भी लिंक फॉरवर्ड कर चुकी हूँ...लेकिन इस रचना पर टिपण्णी क्या करूँ,समझ नहीं पा रही...
बस इतना ही कह सकती हूँ....आपके कलम को नमन !!!
@ दीप्ति
@ सुधीर जी
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
@ बृजमोहन जी
@ स्मार्ट इंडियन
@ महेंद्र वर्माजी
मेरे मनोभावों का समझने और अर्थपूर्ण टिप्पणी देने के लिए आभार
@ सिद्धार्थ जी
@ जितेंद्रजी
सब समझते हैं पिताओं की व्यथा को भी। पिता का स्नेह भी किसी तरह से काम नहीं आँका जा सकता .....
@ केवल राम
@नीलेश जी
@ कोरल
@ संजय जी
@ पूजा
आप सबका शुक्रिया ... मेरी रचना को सराहने के लिए......
@उड़न तश्तरी
@ अभी
@आनंद राठौर
@ skmeel
@ राजे शा
मेरे ब्लॉग पर आने और इस रचना पर अपनी टिप्पणी देने के लिए आभार
@ रश्मि प्रभजी
जी आपका बहुत बहुत आभर .....मैं रचना ज़रूर भेजूंगी
@ उदय
@ सुनील कुमार
@ रंजना
बहुत बहुत आभार प्रोत्साहन देने और अपने विचार साझा करने का
NIRBHEEKTAPOORVAK SACHCHAYEE KI ABHIVYAKTI KARNE VALI MARMIK KAVITA KE LIYE DHANYVAAD .
aapki yah kavita bahut sundar lagi.
अमूल्य कृति है ...
बहुत ही अच्छी रचना ...!
स्त्री होकर जो पुरुष की सोच को महत्त्व दे पाए ....पुरुष होकर जो स्त्री की व्यथा समझ पाए ...नकात्मकता उसका कुछ नहीं बिगड़ सकती ...!
सकारात्मक सोच आपका गहना है ...आपके उत्कृष्ट लेखन से समझ में आ रहा है ...!!बधाई ..!!
पिता पर आपकी येसुन्दर रचना .. एक बच्चे के विकास में माँ के साथ साथ पिता का भी जो योगदान है, इसे आपने बहुत सुन्दर ढंग से और बहुत सुन्दर शब्दों से बाँधा है ..धन्यवाद
मोनिका ,बहुत प्रभावी अन्दाज़ में एक पिता की भावनाओं को चित्रित किया है ...... शुभकामनायें !
पिता के अंतर्भावों पर खूबसरत प्रस्तुति
पिता के भावों पर यथार्थपरक प्रस्तुति,
बहुत खूब
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