इसे माया की विडम्बना कहें या विडम्बना की माया, चकाचौंध से भरी फैशन और खूबसूरती की दुनिया के पीछे भी जो माया रची जाती है उसमें बाज़ार का एक बना बनाया फ़ॉर्मूला काम करता है। हमारे लिए इस माया कि विडम्बना यह है कि इसने पिछले कुछ सालों में हमारे देश की महिलाओं की पूरी सोच और समझ को ही बदल के रख दिया है ।
आज इस विषय पर बात इसलिए कर रही हूँ क्योंकि हाल ही में मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में भारतीय सुन्दरी फिर से अपना कोई स्थान नहीं बना पाईं। सवाल यह है की अब भारतीय सुन्दरियों की खूबसूरती कम हो गयी या फिर इस देश का बाज़ार मिल गया तो यहाँ की खूबसूरती को कोई स्थान देने की ज़रुरत नहीं रही.......?
ज़रा याद कीजिये नब्बे के दशक का वो नज़ारा जब भारतीय सुंदरियों ने इन प्रतियोगिताओं में वर्चस्व कायम किया था। एक साल में तीन ख़िताब भारत के झोली में आये और अगले कुछ बरसों तक भारतीय प्रतिभागी अपनी जगह शीर्ष विजेताओं में पातीं रहीं।
लेकिन २००० के बाद से भारत से गयी कोई भी प्रतिभागी इन प्रतियोगिताओं में शीर्ष स्थान तक नहीं पहुंची। तो क्या अंतर्राष्ट्रीय कॉस्मेटिक कंपनियों की सोची समझी रणनीति के तहत किसी देश की प्रतिनिधि इन प्रतियोगिताओं में अपना स्थान बनाती है ? विकसित देश तकरीबन हर बात में हमारे जैसे देशों को इस्तेमाल कर अपना हितपोषण करते आये है तो फिर ब्यूटी प्रोडक्ट्स के इतने बड़े बाज़ार को हाथ से कैसे जाने देते। शायद इसीलिए कुछ सालों पहले खूबसूरती के कई ख़िताब हमारी झोली में डालकर एक बड़ा बाज़ार अपने हिस्से में ले लिया।
मुझे सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात यह लगती है की ब्यूटी की उस सोची समझी बयार ने हमारे देश में और खासकर महिलाओं के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिए। यकायक सुन्दरता के मायने बदल गए। आँखें कैसी हों..... कमर का माप इतने से ज्यादा न हो..... पेट सपाट ही हो....... वगैरह वगैरह.............! सुन्दरता में इजाफा करने और चिरयुवा बने रहने की ऐसी चाहत हर महिला के मन घर कर गयी जो पहले शायद इतनी नहीं थी। गली-गली में सौंदर्य प्रतियोगिताएं होने लगीं। अचानक सुन्दरता की कुछ ऐसी हवा चली जिसने मानो सीरत की खूबसूरती के मायने ही ख़त्म कर दिए। वैवाहिक विज्ञापनों में स्लिम और स्मार्ट जैसे शब्द प्रमुखता से जगह पाने लगे। बाजारी ताकतों ने भी बदलाव के इस दौर में खूबसूरती के इस हथियार का महिलाओं के खिलाफ जमकर प्रयोग किया और आज तक कर रहीं हैं ।
इस दौरान ऐसा माहौल कुछ ऐसा भी बना की कॉस्मेटिक कंपनियों ने विज्ञापनों में आम महिलाओं को यह सन्देश देना शुरू कर दिया की अगर वे सुन्दरता के इन मापदंडों पर खरी न उतरीं कहीं पीछे छूट जाएँगी। उन्हें बताया जाने लगा की उनका व्यक्तित्व जो भी है.................जैसा भी है....... काफी नहीं है........! यानि की सीधा सा सन्देश दिया गया कि कुछ खास ब्यूटी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कर खुद को सबसे अलग और खूबसूरत दिखाया जा सकता है।
इस दौरान ऐसा माहौल कुछ ऐसा भी बना की कॉस्मेटिक कंपनियों ने विज्ञापनों में आम महिलाओं को यह सन्देश देना शुरू कर दिया की अगर वे सुन्दरता के इन मापदंडों पर खरी न उतरीं कहीं पीछे छूट जाएँगी। उन्हें बताया जाने लगा की उनका व्यक्तित्व जो भी है.................जैसा भी है....... काफी नहीं है........! यानि की सीधा सा सन्देश दिया गया कि कुछ खास ब्यूटी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कर खुद को सबसे अलग और खूबसूरत दिखाया जा सकता है।
मैं मानती हूँ की हर इन्सान की अपनी एक शख्सियत होती है। ऐसे में एक खास बॉडी इमेज को पाने की चाह इन्सान को शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से बीमार बना देती है। हमारे समाज में भी महिलाएं सौंदर्य इस जाल में फंसकर कई तरह की हीन भावना और असंतोष का शिकार हो रही हैं। यह बात और है अब देश में ब्यूटी के ख़िताब भले ही नहीं आते पर बाज़ार और उसकी पैदा कि हुई सोच बरकरार है। सवाल सिर्फ यह कि अपना बाज़ार बनाने के लिए इन कंपनियों द्वारा अपनाई गयी ग्लोबल रणनीतियों का खामियाजा इस देश की महिलाएं दिमागी और शारीरिक सेहत ख़राब करके क्यों चुका रहीं है ? इस बारे में आप सब क्या कहते हैं.............? ज़रूर बताएं।
35 comments:
जीवन को समझने के लिए अच्छा संदेश निहित है इस आलेख में.......
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
आमंत्रण!
अचानक आपके ब्लाग पर पहुँचना हो गया। अच्छी अनुभूति हुई। कॄपया मेरे ब्लाग पर पधारे। वहाँ कुछ आलेख आपकी रुचि के अनुकूल हैं......
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
पेट सपाट, सुन्दर सुडोल काया, रेशमी केश आदि के प्रति सजागता तो अच्छी बात है. स्वस्थ शारीर के परिचायक हैं यह सब.
रही बात विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता में जीत हार..तो यह तो निश्चित ही बाजार का मामला है और कॉअमेटिक कम्पनियों का नियंत्रण तो है ही इस खेल में...
अच्छा आलेख.
@ उड़नतश्तरी....... जी हाँ , मैं भी आपकी बात से सहमत हूँ कि सुन्दरता सपाट पेट और रेशमी बालों के लिए सजगता अच्छी बात है पर जब एक खास तरह का व्यक्तित्व पाने के लिए अंधी दौड़ चल पड़े तो ब्यूटी बीमारियाँ देने लगती है......
अफ़सोस की ऐसा ही हो रहा है।
बहुत उम्दा विश्लेषण किया है आपने. बधाई!
इस दौरान ऐसा माहौल कुछ ऐसा भी बना की कॉस्मेटिक कंपनियों ने विज्ञापनों में आम महिलाओं को यह सन्देश देना शुरू कर दिया की अगर वे सुन्दरता के इन मापदंडों पर खरी न उतरीं कहीं पीछे छूट जाएँगी। उन्हें बताया जाने लगा की उनका व्यक्तित्व जो भी है.................जैसा भी है....... काफी नहीं है........! यानि की सीधा सा सन्देश दिया गया कि कुछ खास ब्यूटी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कर खुद को सबसे अलग और खूबसूरत दिखाया जा सकता है।
ठीक यही हाल हमारे पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े हुए उत्पादों का भी है. आपने बहुत सुंदर लिखा है.
आपकी इस पोस्ट बे तो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया.... यह तो है क्यूँ नहीं अब कोई सुन्दरी भारत से होती है.... ? इसका बहुत सिंपल सा रीज़न है .... क्यूंकि मल्टीनैशनाल्स ने यहाँ के मार्केट का पूरा एक्स्प्लोईटेशन कर लिया है.... इनके साज़िश के तहत ही अब मर्द भी सुन्दरता देखने लग गए हैं.... कभी वी.एल.सी.सी. में घुस जाओ तो मर्दों को वो सब करवाते देख बहुत हंसी आती है जो कभी लड़कियां करवातीं थीं....
बाजारीकरण के अलावा कुछ नहीं
प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति को भिन्न भिन्न विशेषताएं दी है .. प्रत्येक व्यक्ति अपनी खूबियों को विकसित कर एक खास तरह के व्यक्तित्व के स्वामी बन सकते हैं .. सबके व्यक्त्तिव का मापदंड सपाट पेट , सुन्दर सुडौल काया, रेशमी केश ही नहीं हो सकते हैं .. पर इन पुरस्कारों द्वारा समाज , देश को ऐसा संदेश अवश्य दिया गया है .. अपने प्रोडक्टों को बेचने के लिए कंपनियों के इसमें गठजोड से इंकार नहीं किया जा सकता !!
आप की बात से सहमत हुं जी यह सब बाजार वाद ही तो है, इतना मेक अप करने बाद तो सभी सुंदरियां ही लगती है, ओर जब बाजार चल निकला तो अब यह कमपनियां किसी दुसरे देश मै अपना रंग रोगन ले कर चल दी, सुंदरता क्या है जो बिना मेक अप के हो, ओर हम सभी भारतीया कुदरती तोर पर सुंदर रंग के बने है, ना तो उबले आलू की तरह से गोरे, ओर ना ही काले.... लेकिन फ़िर भी हम इन रंग रोगन के पीछे भाग रहे है
आपने सही कहा क्या किया जाये बाजार वाद हर जगह हाजिर है सिर्फ ब्यूटी प्रोडक्ट क्या अब तो दो देशो के सम्बन्ध भी बाजार देख कर बनता है
बहुत सारगर्भित पोस्ट है आपकी...फैशन में पैसा और शोहरत अपनी और खींचता है...इसी के चक्कर में महिलाएं शोषण का शिकार होती हैं...शोषण चाहे मानसिक हो या शारीरिक...शोषण ही है...
नीरज
.
शारीरिक सुन्दरता के लिए किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता अनावश्यक लगती है।
मैं तो मन की सुन्दरता , बोद्धिक एवं वैचारिक स्तर पर ही सुन्दर मानती हूँ।
zealzen.blogspot.com
.
औरतें ही नहीं मर्द भी इस ब्यूटी-बाज़ार में बराबर के मूर्ख बन रहे हैं. आज का युवा मनोग्रंथियों का पुतला बना जा रहा है. विचारपूर्ण लेख पर बधाई.
बड़े ही सामयिक प्रश्न उठाये हैं। इस विषय पर बिना पूर्वाग्रह के खुला चिन्तन होना चाहिये।
आपकी बात से हमेशा से सहमत । स्वास्थ्य होना जरूरी है । झीरो साइज नही ।
सही कहा!
मोनिका सुन्दरता का भाव तो सबमें होता है अच्छा दिखना हर कोई चाहता है मगर सुन्दरता का एक सनक हो जाना इक बीमारी है....क्यूंकि अच्छा होना और अच्छा दिखना दोनों बिलकुल अलग-अलग दो बातें हैं....है ना....??
बाज़ार की महिमा ये है कि आने वाले समय में बस अफ़्रीका ही अफ़्रीका होने वाला है चाहे वह सुंदरियां हों, सौंदर्यप्रसाधन या विकासोन्नमुख गतिविधियां. जहां कहीं भी क्रयशक्ति होती है ये बाज़ार की नब्ज़ पकड़े ढकोसलेबाज़ उधर ही हो लेते हैं. इसलिए तथाकथित उपलब्धियों के ढिंढोरे भावुक करते हों तो यह विज्ञापन की सफलता के अतिरिक्त कुछ और नहीं ही होना चाहिये..
@ भूतनाथ जी हाँ, बिलकुल सही कहा आपने........अच्छा होना और अच्छा दिखना दोनों बिलकुल अलग-अलग दो बातें हैं।
आप सबकी वैचारिक टिप्पणियों के लिए आभार
आपकी इस पोस्ट बे तो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया
हम तो जैसे हैं वैसे ही दिखना चाहते हैं तन से भी और मन से भी।
बहुत गहरी सोच है आपकी ... आपका कहना सच लगता है ये कोई सोची समझी चाल हो सकती है ई विदेशी कंपनियों की भारत के बाज़ार को लुभाने की .... ख़तर्णाम खेल खेलती हैं ये विदेशी कमपनियाँ ....
आप का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
बिलकुल सही आलेख |शहर तो शहर अब गाँव में भी इसी मानसिकता ने अपने पैर जमा लिए है मोबाईल क्रन्ति की तरह बनावटी सौंदर्य क्रांति |
@शोभना जी सच में शोभना जी यही हाल है......
अच्छा आलेख.
bahut hi sateek aalekh...
bas itna kahna chahunga...
"ab kya solah sringaar me sajengi ladkiyan...sunderta jo baazar me bikne lagi hai.."!!!
wakai kitna hasyaspad hai ki log saundrya prasaadhano se sunderta kharidne lage hain......
सारगर्भित पोस्ट,सही कहा
सच तो ये है कि पूरी प्रतियोगिता ही मार्केटिंग का फैलाया जाल है, लेकिन इस बहाने स्वस्थ रहने के प्रति सजगता शायद बनी रहे।
उम्दा विश्लेषण,
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत सही मुद्दा उठाया है मोनिका जी ! अति हर चीज़ की बुरी होती है ..जब तक सुंदरता सजगता तक सीमित है सुन्दर है ,होड की दौड में जुड जाये तो बीमारी ही है ,
रहा सवाल प्रतियोगिता का तो वो तो पूर्णत राजनेतिक ही लगती है मुझे.
@शिखा जी बिलकुल सही बात है शिखा जी.....
सबसे ज्यादा दुःख तो इस बात का है की सुन्दरता की यह दीवानगी हमारे पूरे सामाजिक तानेबाने को प्रभावित कर रही है...
..मैं मानती हूँ की हर इन्सान की अपनी एक शख्सियत होती है। ऐसे में एक खास बॉडी इमेज को पाने की चाह इन्सान को शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से बीमार बना देती है।..
..सुंदर लेखन।
..आपके ब्लॉग में पहली बार आया. कविता और गद्य दोनो में आपकी लेखन शैली सार्थक है.
monika ji
bilkul sahi kaha aapne...
bas ye sabkuchh bazar ki mahima aur paise ka khel hai
Post a Comment